लेखक : रमेश तन्ना, हिन्दी अनुवाद : राजेन्द्र निगम
अहमदाबाद (25 मई, 2020)। 24 मई, 2020 को ‘द न्यूयार्क टाईम्स’ (THE NEW YORK TIMES) यानी NYT ने प्रथम पृष्ठ पर अमेरिका के कोरोनाग्रस्त एक हजार मृतकों की सूची प्रकाशित की है। शीर्षक दिया है। अमेरिका में एक लाख मौत: बेहिसाब क्षति प्रथम पृष्ठ पर अन्य कोई समाचार नहीं है, न ही कोई विज्ञापन है और न ही कोई ग्राफिक्स हैं.. मात्र मृतकों के नाम और यह भी कि यह आँकड़ा शीघ्र ही एक लाख तक पहुँच जाएगा।
विश्व की पत्रकारिता में यह घटना एक मील का पत्थर है, जब किसी अखबार ने प्रथम पृष्ठ पर मात्र मृतकों के नाम लिखे हों। विश्व के 415 वर्ष के अखबारी पत्रकारिता के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है।
अखबार ने ऐसा क्यों किया ?
एनवायटी के अंदर के पृष्ठों पर टाईम्स इनसाइडर में इसे स्पष्ट किया है। लोगों में कोरोना के संबंध में गंभीरता व जागृति आए, इसके लिए बहुत मनोमंथन के बाद ‘द न्यूयार्क टाईम्स’ ने यह निर्णय लिया है। समाचारपत्र की ग्राफिक डेस्क के असिस्टेंट डायरेक्टर सीमोन कहते हैं कि हमने एक लाख डाट या एक लाख सटीक फिगर भी वहाँ लगा दिए होते, लेकिन हम जो गंभीरता पहुँचाना चाहते थे, वह हम नहीं पहुँचा पाते।
उल्लेखनीय है कि अमेरिका में कोरोना (CORONA) वायरस से फैली वैश्विक महामारी कोविड 19 से मरने वालों का आँकड़ा शीघ्र ही 1,00,000 को स्पर्श करने वाला है। कदाचित इसीलिए एनवायटी ने अमेरिका, अमेरिकी सरकार, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को इस संकट की विभीषिका समझाने का प्रयास किया है।
किसी को लग सकता है कि क्या ऐसा करना किसी अखबार के लिए उचित है ? उसके अलग-अलग और एक-दूसरे के विपरीत सिरों से जवाब मिल सकते हैं। दुनिया के सबसे प्रसिद्ध दैनिक अखबार उसके पहले पृष्ठ पर एक हजार मृतकों के नाम मुद्रित कर दे, तो कई को यह अंदर से चुभेगा। उन्हें वह खराब, अनुचित, अशोभनीय व असभ्यता से भरा हुआ लगेगा। लेकिन अखबार ने किसी ख़ास उद्देश्य से ऐसा किया है।
अख़बार ने दिया गंभीर संदेश
दुनिया की महासत्ता एक नगण्य से वायरस के समक्ष लाचार सिद्ध हो रही है और उसके अनेक कारणों में से एक कारण है लोगों में कोरोना वायरस के प्रति गंभीरता का नितांत अभाव। एक हजार नाम प्रकाशित कर अख़बार समस्त अमेरिका को कहना चाहता है कि जागो, अब जागो, अब जागो। कोविड 19 (COVID 19) को इतने हल्के में नहीं, बल्कि उसे अति गंभीरता से लें।
इतनी विशाल आपदाओं, महामारियों के समय मीडिया की भूमिका कसौटी पर होती है। मीडिया पर आक्षेप लगाए जाते हैं कि वह लोगों में भय का वातावरण उत्पन्न करती है। एक तरफ़ा अतिशयोक्तिपूर्ण रिपोर्ट्स व सरकार की टीका कर वह लोगों में डर फैलाती है। मीडिया वास्तव में ऐसा करती है या नहीं, इसका कोई सीधा जावाब नहीं दिया जा सकता है, क्योंकि ऐसे संवेदनशील वक्त के दौरान किसी भूमिका की माप-तौल नहीं कर सकते हैं।
मीडिया के पास दलील होती है कि वे जनहित में ही ऐसी अतिशयोक्ति करते हैं। कच्छ के भूकंप के समय यदि मीडिया ने कुछ अधिक शोकमय चित्र नहीं बताए होते तो शायद पूरे विश्व से बचाव व राहत की इतनी मदद न मिली होती और सरकार भी उच्च स्तर पर इतनी सक्रिय नहीं हुई होती।
एनवायटी ने जो किया, वह उचित है
हालांकि मैं मानता हूँ कि स्थिति कैसी भी हो, अखबार की भूमिका तटस्थ व संतुलित ही होना चाहिए। इरादा चाहे अच्छा हो, फिर भी अतिशयोक्तिपूर्ण, गलत व एक-पक्षीय रिपोर्टिंग अंत में किसी न किसी तरह नुकसानकारक ही होती है। अतिशयोक्ति तो झूठ से भे अधिक खतरनाक होती है।
जब भी जैसा भी हो व जिस तरह से भी घटित हुआ हो, वही प्रस्तुत किया जाना चाहिए। हाँ, उसमें अखबार के संपादक या संचालक अपने विचारों का समावेश कर सकते हैं, लेकिन उसमें विवेक, समझ व परिपक्वता होनी चाहिए। मंजे हुए, अनुभवी, परिपक्व और जिसने समाज की नब्ज को परखा हो, वैसे संपादक ही वह काम कर सकते हैं।
महामारी का समय बहुत नाजुक व जोखिमभरा होता है। तब मीडिया को तो मानो तलवार की धार पर ही चलना पड़ता है। तब उसे अपने बोल व रोल की ठीक से जाँच करना होती है।
‘द न्यूयार्क टाईम्स’ ने जो किया है, वह उचित ही है। इसके द्वारा उसने अमेरिका की आँखों को इतनी अधिक खोलने की कोशिश की है कि निरी आँखों से दिखाई न देनेवाला कोरोना वायरस अब प्रत्येक अमरीकी को वह फ़ुटबाल जितना बड़ा दिखाई देगा…
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