मंथन : कन्हैया कोष्टी
अहमदाबाद, 21 अप्रैल, 2014 (बीबीएन)। रा… म…। ढाई अक्षर के शब्द राम में हमारी जानकारी और बिना जानकारी वाला पूरा ब्रह्मांड समाया हुआ है। हमारी भारतीय सनातन संस्कृति में नाम की अपार महिमा है। नाम व्यक्ति का नहीं होता, बल्कि व्यक्ति की उपाधि होता है। उपाधि इसलिए, क्योंकि गहरी नींद में भी हमारा नाम पुकारे जाने पर हम जाग जाते हैं और कहते हैं, “हाँ, मैं ही हूँ।” हमें अपना व्यक्तिगत नाम नहीं, बल्कि हमारा उपाधि नाम निरंतर जागृत रखता है, लेकिन साधारण व्यक्ति निज स्वरूप की अज्ञानता के कारण स्वयं को व्यक्तिगत नाम में सीमित कर देता है। जो निज स्वरूप को जानता है, वही उपाधि नाम की महिमा समझता तथा जानता है।
ख़ैर, आज मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का जन्म दिवस है। वैसे राम से पहले भगवान लिखें, तो निश्चित रूप से उनका न जन्म दिवस हो सकता है और न ही ब्रह्मलीन दिवस। चूँकि राम ने अपने जीवन चरित्र तथा कर्मों को ईश्वर समान ऊँचाई दी, अत: हम आस्थावश उन्हें भगवान की उपाधि देते हैं, परंतु वास्तव में ईश्वर जन्म-मृत्यु सहित सभी द्वंद्वों से परे निर्द्वंद्व, अजन्मा एवं अविनाशी होता है।
आज जब भारत सहित पूरे विश्व में बसे 150 करोड़ सनातन धर्मावलंबी राम नवमी मना रहे हैं, तब हम राम नाम का वास्तविक अर्थ बता कर श्रद्धालुओं को यह संदेश देना चाहते हैं कि राम किसी मंदिर-देवालय तक सीमित नहीं हैं। हमारे शास्त्र-पुराण तो बार-बार और पुकार-पुकार कर कहते हैं, “घट-घट में राम।” अब प्रश्न यह उठता है कि जब घट-घट में राम हैं, तो त्रेता युग में जन्मे राम आज प्रत्यक्ष क्यों नहीं हैं ? हमें दिखाई क्यों नहीं देते ?
राम के अर्थ में छिपे राम
राम को मूर्तियों और चित्रों में देख कर पूजने वाले यदि थोड़ा-सा गहन चिंतन-मनन करें, तो वे राम को घट-घट में देख सकते हैं। जब घट-घट में राम दिखेंगे, तो आपको किसी मूर्ति या चित्र को देखने या उसकी पूजा करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। वास्तव में राम शब्द के अर्थ में ही राम छिपे हुए हैं, परंतु हमारी बाह्य दृष्टि तथा बाह्य क्रियाकांड हमें वास्तविक राम तक पहुँचने देने में सबसे बड़ी बाधा बनते हैं।
राम को नहीं, अर्थ को जानिए
सच्चे बुद्धिशालियों, बुद्धिमानियों और आचार्यों-पंडितों ने राम को उनके अर्थ सहित जाना और अपने अनुभवों को अनेक प्रकार के ग्रंथों में उतारा। यदि राम के अर्थ को जान लिया जाए, तो राम साक्षात् हो जाएँगे।
तो चलिए, आपको बता ही देते हैं राम नाम का अर्थ। राम शब्द का अर्थ ‘प्रकाश’ है। किरण, आभा तथा कांति (नूर) जैसे शब्दों के मूल में राम ही हैं। ढाई अक्षर के शब्द राम में डेढ़ अक्षर ‘रा’ का अर्थ ‘आभा (कांति-नूर)’ है, जबकि एक अक्षर ‘म’ का अर्थ ‘मैं, मेरा और मैं स्वयं’ है। इस प्रकार राम का अर्थ होता है, “मेरे भीतर प्रकाश, मेरे ह्रदय में प्रकाश।”
स्वयं को अन्य से श्रेष्ठ मानने वाले तथा अहंकार से भरे बुद्धिशाली लोग राम को जानने के लिए भले ही रामायण सहित अनेक ग्रंथ पढ़ लें, तो भी वास्तविक राम को नहीं जान सकते, क्योंकि वे राम के अर्थ को जान कर उसे आत्मसात् करने का प्रयास नहीं करते। राम के अर्थ को आत्मसात् करने के लिए बाह्य आडंबरों से मुक्त होकर भीतर झाँकना होता है, क्योंकि राम का अर्थ ही है, “मेरे भीतर प्रकाश”। जब तक हमें “अपने भीतर प्रकाश” की स्वयं अनुभूति नहीं होती, तब तक निश्चित मानिए कि हम राम को नहीं जानते।
राम को जानने का एकमात्र रामबाण उपाय
निश्चय ही ‘राम’ ईश्वर का नाम है, परंतु जब हम स्वयं अपने भीतर और उसके बाद घट-घट में राम की अनुभूति कर सकें, तभी वह हमारे लिए वास्तव में ईश्वर बनते हैं, वरना हमारा राम को भगवान मानना केवल पीढ़ियों से चली आ रही मान्यता से अधिक कुछ नहीं है। लोग उस राम की पूजा करते हैं, जिनहोंने महान भारत भूमि पर 7560 ईसा पूर्व अर्थात् 9500 वर्ष पूर्व अवतार लिया था। जो जन्म लेता है, उसे मरना ही होता है। इसीलिए अवतार स्वरूप राम को भी अपना कार्य पूर्ण होने के बाद जगत से जाना पड़ा था, परंतु यदि आप राम के अर्थ में गहराई तक उतर कर चिंतन-मनन करें और अर्थ को आत्मसात् करें, तो आप अनुभव करेंगे, “मैं और मेरा राम सदा-सर्वदा थे, हैं और रहेंगे।” हाँ, इस विधा तथा अनुभव को प्राप्त करने के लिए आपको एक ब्रह्मनिष्ठ एवं ब्रह्मसोत्रीय गुरु की आवश्यकता पड़ेगी। ऐसा गुरु, जो स्वयं राम को जानता हो, जो स्वयं राम स्वरूप हो, वही आपका वास्तविक राम से साक्षात्कार करा सकता है।
जय श्री राम।
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