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रिपोर्ट : कन्हैया कोष्टी
अहमदाबाद 18 मई (2020)। कोरोना वायरस से फैली वैश्विक महामारी कोविड 19 के कारण राष्ट्र लॉकडाउन की बेड़ियों में जकड़ा हुआ है। ये बेड़ियाँ कुछ दिनों तक तो लोगों को जान की कीमत के आगे हल्की लगीं, परंतु जब सवाल पेट की भूख का आया, तो यही बेड़ियाँ बोझ बन गईं, जिसका परिणाम यह है कि 4 मई से 17 मई का लॉकडाउन 3.0 अपने पीछे अपार पीड़ा, कष्ट और सिसकियों का सन्नाटा छोड़ कर गया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गत 25 मार्च, 2019 से 130 करोड़ नागरिकों को लॉकडाउन की घोषणा कर घरों में बंदी बना डाला था, ताकि कोरोना संक्रमण को रोका एवं उसकी चेन को तोड़ा जा सके।
25 मार्च से 14 अप्रैल तक चले लॉकडाउन 1.0 में लोगों ने अधिकांशत: संयम बरता, तो 15 अप्रैल से 3 मई के लॉकडाउन 2.0 में भी लोगों ने प्राण को अधिक प्राथमिकता दी, परंतु जब केन्द्र सरकार ने 4 मई से लॉकडाउन 3.0 लागू किया, तो देश के निर्धन व श्रमिक वर्ग के लिए कोरोना के भय से अधिक पेट की भूख प्राथमिकता बन गई।
केन्द्र सरकार ने लॉकडाउन 1.0 व 2.0 से इतर लॉकडाउन 3.0 में देश के विभिन्न भागों में फँसे तथा घरों से दूर रहे लोगों विशेषकर श्रमिकों की घर वापसी का प्रावधान किया।
श्रमिकों को घर पहुँचाने के लिए की गई इस व्यवस्था में समन्वय के अभाव के चलते घोर अव्यवस्थाएँ देखी गईं, जिसके कारण लॉकडाउन 3.0 की अवधि यानी 4 मई से 17 मई तक का समय स्वतंत्र भारत में एक पीड़ादायक व कष्टदायक इतिहास के रूप में दर्ज हो गया।

विभाजन-सी तसवीरों ने दिल दहलाया

स्वतंत्र भारत के इतिहास में कोरोना संकट से पहले कभी इतना विशाल व दर्दनाक पलायन नहीं देखा गया। स्वतंत्रता से पूर्व हुए देश के विभाजन के समय जो दिल दहलाने वाली तसवीरें बनी थीं, उसके बाद देश में ऐसा कोई राष्ट्रव्यापी संकट नहीं आया कि लाखों की संख्या में लोगों को पलायन करना पड़े।
जब कोरोना संकट के चलते लॉकडाउन लागू हुआ, तो पहली बार देश ने विभाजन के दौरान हुए पलायन जैसी तसवीरें देखीं। 1947 की उन तसवीरों में जहाँ पाकिस्तान व पाकिस्तानियों के अत्याचार की दास्ताँ थी, वहीं 2020 में पलायन की जो तसवीरें आईं, उनमें प्रवासी श्रमिकों की विवशता, पीड़ा, सैंकड़ों किलोमीटर की दुर्दांत पदयात्रा, पाँव में छाले, भूख-प्यास के बीच शासनिक-प्रशासनिक सिस्टम की असंवेदनशीलता और जैसे इतना कम हो, दुर्घटनाओं का वज्राघात शामिल था।

139 श्रमिकों के लिए काल बना लॉकडाउन

देश में कोविड 19 के कारण 25 मार्च को लॉकडाउन लागू होने के बाद सबसे पहले कोई बेरोज़गार हुआ, तो वे श्रमिक थे। यही कारण है कि कई श्रमिकों ने काम-धंधा बंद होने व भूखों मरने की नौबत आने के बाद लॉकडाउन 1.0 के दौरान ही घर वापसी शुरू कर दी थी। बसें-ट्रेनें बंद थीं। ऐसे में श्रमिकों ने पैरों का सहारा लिया और सैंकड़ों किलोमीटर दूर स्थित अपने घरों की ओर पैदल ही निकल पड़े।
लॉकडाउन 2.0 यानी 15 अप्रैल से 3 मई के दौरान श्रमिकों का पलायन और बढ़ गया। 25 मार्च से 3 मई तक लगभग 50 श्रमिकों की सड़क पर चलते हुए असहनशीलता के कारण या फिर अज्ञात वाहनों की टक्कर से मौत हो गई।

असह्य पीड़ा व मौत का तांडव बना लॉकडाउन 3.0

जब सरकार ने देखा कि श्रमिक घर वापस जाना चाहते हैं, तो 4 मई से 17 मई तक के लॉकडाउन 3.0 के दौरान श्रमिकों की घर वापसी की व्यवस्था की गई। केन्द्र सरकार व भारतीय रेलवे ने 25 मार्च से बंद यात्री ट्रेनों को लॉकडाउन 3.0 के दौरान श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के रूप में चलाया, तो राज्य सरकारों ने अपनी बसों को सड़कों पर उतारा।
लाखों श्रमिकों को इन विशेष ट्रेनों व बसों से घर पहुँचने का सौभाग्य मिला, परंतु कुछ दुर्भाग्य के मारे श्रमिक न तो ट्रेन व न ही बस का लाभ उठा सके। असहाय स्थिति में उन्होंने पदयात्रा का ही रास्ता अपनाया, जिसके परिणामस्वरूप महाराष्ट्र के औरंगाबाद में 14 श्रमिकों की मालगाड़ी (ट्रेन) से कट कर मौत हो गई। ये श्रमिक रेल पटरी के आसपास से पैदल घर जा रहे थे। तभी थक कर पटरी पर ही सो गए, जिन्हें मालगाड़ी ने कुचल दिया।

निजी वाहनों का उपयोग बना प्राणघातक

इतना ही नहीं, जिन श्रमिकों ने निजी वाहनों का उपयोग किया, उनमें भी कई दुर्घटनाओं का शिकार हुए, जिसमें सबसे भयावह दुर्घटना उत्तर प्रदेश के ओरैया में हुई। श्रमिकों से भरा ट्रक ओरैया हाईवे पर खड़ा था, तभी एक अन्य वाहन ने उसे चपेट में ले लिया, जिससे 24 श्रमिकों की मौत हो गई। इसके बाद मध्य प्रदेश के सागर में श्रमिकों से भरा ट्रक पलट गया, जिसमें 5 श्रमिकों की हुई।
मध्य प्रदेश के ही गुना में गत गुरुवार व शुक्रवार को दो अलग-अलग दुर्घटनाओं में 14 प्रवासी श्रमिक मारे गए। उत्तर प्रदेश में भी शुक्रवार को विभिन्न दुर्घटनाओं में 6 श्रमिकों को घर पहुँचने से पहले परलोक सिधारना पड़ा। अब ईश्वर से यही प्रार्थना करनी चाहिए कि 18 मई से 31 मई तक के लिए लागू हुए लॉकडाउन 4.0 में ये दर्दनाक दुर्घटनाएँ फिर से न हों।

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