भारत सौभाग्यशाली, जिस पर सूर्य की सर्वाधिक कृपा बरसती है
पश्चिमी देश तपती या सुहानी क्या, खिली धूप को भी तरसते हैं
आलेख : रमेश तन्ना, हिन्दी अनुवाद : राजेन्द्र निगम
अहमदाबाद (11 जून, 2020)। एक महिला का नन्हा बच्चा कहीं खो गया। बेचारी घबरा गई और उसे ढूँढने के लिए पूरे गाँव में वह घूमी। एक गली से दूसरी गली और दूसरी से तीसरी गली। व्यग्रता व चिंता अपार। रास्ते में एक माँजी मिलीं। उन्होंने महिला से उसकी व्याकुलता का कारण पूछा। उस स्त्री ने रोते-बिलखते बताया कि उसका लड़का गुम हो गया है।
वह माँजी हँसते-हँसते बोली, ‘अरे, क्या तू पागल हो गई है ? तुम्हारे बालक को तुमने ही तो अपनी काँख में ले रखा है।’ महिला ने देखा कि उसका बच्चा उसकी काँख में ही था और वह थी कि उसे पूरे नगर में ढूँढ रही थी। इस पर हिन्दी में एक कहावत भी है, ‘बग़ल में छोरा-नगर में ढिंढोरा’। क़रीब-क़रीब ऐसी ही दशा भारत के लोगों की है।
कोरोना (CORONA) से संघर्ष करने के लिए रोग-प्रतिकारक शक्ति बढ़ाने की ज़रूरत है। उसका सबसे बड़ा स्त्रोत है, सूर्य। लोग रोग-प्रतिकारक शक्ति बढ़ाने के लिए जी-जान से लगे हुए हैं, लेकिन उन्होंने सूरज को दरकिनार किया हुआ है। तब ऐसे में उस महिला की याद आती है, जिसका बच्चा उसकी काँख में था, लेकिन वह पूरे गाँव में उसकी तलाश कर रही थी।
यह भारत का सौभाग्य है कि उसे चमचमाता व तपता सूर्य मिला है। कई विकसित व समृद्ध देश ऐसे सूरज को देखने से मरहूम हैं। सूर्य-ऊर्जा शक्ति का अपार स्त्रोत है। गुजरात में अहमदाबाद स्थित ‘आदर्श अमदावाद’ (AADARSH AMDAVAD) के संस्थापक भरतभाई शाह ने हाल ही में फेसबुक पर जीवंत व्याख्यान दिया और बताया कि सूर्य ऊर्जा से रोग प्रतिकारक शक्ति को किस तरह बढ़ाया जा सकता है ? वे स्वयं सूर्य ऊर्जा की पिछले पंद्रह वर्षों से प्रैक्टिस कर रहे हैं।
उन्होंने सूर्य ऊर्जा की मदद से उनकी खुराक को 35 प्रतिशत कम कर लिया है। भरतभाई परम जीवन-साधक है। अहमदाबाद जैसे महानगर में रहने के बावज़ूद वे संपूर्ण रूप से नैसर्गिक जीवन जीते हैं। प्रकृति की कई थेरापियों का उन्होंने अपने जीवन में वर्षों से सफल विनियोग किया है।
अहमदाबाद नगर को आदर्श बनाने के लिए वे 15 वर्षों से पूरे मनोयोग से अथक परिश्रम कर रहे हैं। वे 74 वर्ष की उम्र में भी संपूर्ण स्वस्थ हैं। कोई बीमारी नहीं, इसलिए एक भी दवा नहीं लेते हैं। न खुद बीमार पड़ते हैं और न ही आसपास के लोगों को बीमार पड़ने देते हैं। उनकी 74 वर्ष में वैसी ही ऊर्जा है, जैसी 47 वर्ष में होती है।
भरतभाई शाह ने सूर्य-साधक हीरा रतन माणेक से सूर्य दर्शन चिकित्सा (Sun Gazing Therapy) सीखी है और न केवल भारत बल्कि समग्र विश्व में सूर्य दर्शन चिकित्सा को प्रतिष्ठित करने का श्रेय हीरा रतन माणेक को जाता है। मूल रूप से कच्छ के हीराभाई रतनभाई माणेक के पूर्वज धंधा-व्यवसाय के लिए केरल के कालीकट में बस गए थे।
हीरा रतन माणेक मैकेनिकल इंजीनियर बने। उन्हें बचपन से ही सूर्य में अपार अभिरुचि थी। वे एक बार पुड्डुचेरी भी गए थे। तब वहाँ उन्हें श्री माताजी ने सहज रूप से कहा था कि जब भी उन्हें अवकाश मिले, वे सूर्य ऊर्जा के संबंध में संशोधन करें। वे सन् 1992 में निवृत्त हुए और उसके बाद उन्होंने अपना संपूर्ण समय सूर्यशक्ति से संबंधित संशोधनों में व्यतीत किया। स्वयं पर प्रयोग करते हुए उन्होंने सूर्य से शक्ति प्राप्त करने की एक सरल पद्धति विकसित की।
मानव कल्याण के लिए हीरा रतन माणेक की ओर से विश्व को इक्कीसवीं सदी की यह अद्भुत भेंट है। सूर्य से ऊर्जा प्राप्त कर हीरा रतन माणेक वर्षों तक बिना आहार के रहे। मात्र सूर्य ऊर्जा की मदद से उन्होंने भारत में 211, 411 और अमेरिका में 130 उपवास किए। मेडिकल क्षेत्र के प्रसिद्ध डाक्टरों व विशेषज्ञों की मोजूदगी में उनके परीक्षण किए गए।
उन्होंने 160 से अधिक देशों में प्रवास कर लोगों को सूर्य शक्ति के बारे में जानकारी दी। वे कहते हैं कि यह कोई नई बात नहीं है। सूर्य चिकित्सा पद्धति एक प्राचीन पद्धति है, जिसका शास्त्रों में उल्लेख है।
समग्र विश्व में HRM के नाम से जाने जाते हीरा रतन माणेक मनुष्य के ब्रेन को ब्रेन-ट्यूनर कहते हैं। उसे सूर्य से चार्ज कर, सूर्य की अनूठी शक्ति का लाभ लिया जा सकता है। हीरा रतन माणेक ने कई दशकों तक सूर्य का गहन अभ्यास किया और संशोधनों के द्वारा सूर्य से शक्ति प्राप्त करने की विविध पद्धतियों के बारे में जानकारी ली, जिससे प्रत्येक व्यक्ति उससे व्यापक रूप से लाभान्वित हो सके|
- सूर्य दर्शन पद्धति में सूर्योदय के बाद या सूर्यास्त के पहले एक घंटे सूर्य का सीधा दर्शन करना चाहिए। जमीन पर सीधे खड़े रह कर प्रथम दिन 10 सेकंड दर्शन करना है। उसके बाद प्रतिदिन 10 सेकंड बढ़ाते रहें और ऐसा करते हुए नौंवे महीने 45 मिनट तक पहुँचना पड़ता है। 15 मिनट, 30 मिनट इस प्रकार के पड़ाव पार कर 45 मिनट पर पहुँचने के बाद फिर जीवनभर अधिक सूर्य दर्शन की ज़रूरत नहीं रहती है।
- सूर्य दर्शन के इस चरण को पूरा करने के बाद प्रतिदिन एक घंटे जमीन या रेती पर नंगे पैर चलना चाहिए। इस तरह एक वर्ष तक चलने के बाद उसे बंद कर दें, फिर उस तरह चलने की ज़रूरत नहीं है। आप 365 दिन नंगे पैर जमीन पर चलेंगे, तो फिर आपकी देह सदैव के लिए चार्ज हो जाएगी।
- सूर्य प्रकाश संजीवनी है। सूर्य-स्नान भी बहुत लाभप्रद है। शरीर पर सूर्य की किरणों को लेना चाहिए (जितनी सहन कर सकें)।
- काँच की पारदर्शक बरनी में छह-आठ घंटे रखा हुआ वह पानी जो सूर्य की किरणों से गर्म हो गया हो, उसके पीने से बहुत फायदे हैं। गाँव में पहले कुओं, तालाब-नदी पर सूर्य की धूप पड़ती थी और लोग उस पानी को पीते थे और उससे वे कई रोगों से स्वतः बच जाते थे। सूरज की किरणों के अलग-अलग रंग होते हैं और अलग- अलग रोगों के लिए अलग-अलग रंग उपयोगी होते हैं। राजकोट के सुरेन्द्रभाई दवे ने इस पर संशोधन किया है और ऊँ योग पुस्तक भी लिखी है।
- सूर्य चिकित्सा के अनेक लाभ हैं। उससे व्यक्ति की रोग प्रतिकारक शक्ति में जबरदस्त वृद्धि होती है। नए रोग तो आते ही नहीं हैं, लेकिन पुराने रोग भी छू-मंतर हो जाते हैं। सूर्य चिकित्सा के विभिन्न चरणों में मानसिक तनाव, अवसाद, बेचैनी, व्यग्रता कम होती जाती है| अशांत व चंचल मन शांत हो जाता है। धैर्य के गुण में वृद्धि होती है। निरुत्साही व बेचैन मन मजबूत, दृढ़, उत्साही व निर्णायक बन जाता है। मानसिक अवस्था बेहतर हो जाती है। मन सकारात्मक और ताजगी युक्त हो जाता है। व्यसनों से छुटकारा मिल जाता है। शरीर के सभी प्रकार के दुःख मिट जाते हैं। नियमित व कुछ निश्चित समय तक यह चिकित्सा की जाए तो मधुमेह (डायबिटीज) व उच्चरक्तचाप (हाई बीपी) सहित अधिकांश बीमारियों से मुक्ति मिल जाती है। पाचनतंत्र, फेफड़े व गले के रोग मिट जाते हैं। आँखें तेजस्वी बन जाती हैं और नंबर कम हो जाते हैं। सायनस व थायरायड से भी छुटकारा मिल जाता है। सूर्य चिकित्सा से व्यक्ति सकारात्मक अभिगमवाला और गुणग्राही बन जाता है। कान-नाक व गले के दर्द तिरोहित हो जाते हैं। दस्त-बवासीर, मसा, पथरी, प्रोस्टेट, यूरिनरी इंफेक्शन, मुहाँसे, शीतपित्त, खुजली जैसे असाध्य व जटिल रोग भी इस चिकित्सा पद्धति से पराजित हो सकते हैं और कह सकते हैं कि डॉ. सूर्यनारायण बगैर एक पैसा लिए सभी रोग मिटा सकते हैं।
हीरा रतन माणेक वास्तव में एक भारतीय रत्न हैं। उन्होंने सूर्य चिकित्सा पद्धति का आविष्कार कर हमें बहुत उपकृत किया है। उन्होंने समग्र दुनिया में घूम-घूम कर इसका प्रचार-प्रसार किया है। मैंने तो यह भी सुना है कि अमेरिका स्थित ‘नासा’ (NASA) संस्था ने उनसे संपर्क किया था। अंतरिक्ष में जानेवाले अंतरिक्ष-वैज्ञानिक क्या सूर्य से आहार प्राप्त कर सकते हैं, इस संबंध में शोध करने का कार्य उन्हें सौंपा गया था।
मनुष्य के शरीर को आहार की नहीं, बल्कि कैलोरी शक्ति की ज़रूरत होती है। सूर्य कैलोरी का बड़ा स्त्रोत है। दो आँखों से सूर्य की शक्ति को ग्रहण कर और उसे अपने शरीर पर ले कर व्यक्ति शरीर के संचालन के लिए आवश्यक ऊर्जा प्राप्त कर सकता है।
हीरा रतन माणेक ने तो इसे सत्य भी सिद्ध किया है। वे 211, 411 और 130 उपवास करने के अलावा वे वर्षों तक उबले हुए और नारियल पानी पर ही रहे। उनके मार्गदर्शन में भरतभाई शाह ने इसे सीखा, वे प्रेक्टिशनर बने और उन्होंने अपना स्वयं का आहार 35 प्रतिशत तक कम किया।
वैसे भरतभाई शाह दस से अधिक वैकल्पिक चिकित्साएँ जानते हैं, लेकिन उन्होंने सूर्य चिकित्सा-पानी- खुराक-उपवास व शिवाम्बु उपचार पद्धति का स्वयं पर वर्षों तक प्रयोग किया और उन्हें उत्तम परिणाम भी प्राप्त हुए। वे पहले करते हैं और उसके बाद ही कहते हैं। उनके मार्गदर्शन में हृदय से जुड़कर विविध थेरापी के सैकड़ों साधक तैयार हुए हैं।
सूर्य चिकित्सा पद्धति में उनसे मार्गदर्शन प्राप्त कर चिमनलाल केशवलाल शाह, धीरूभाई वोरा, बेलाबेन शाह, ममताबेन शाह अब सूर्य ऊर्जा के नए साधक तैयार कर रहे हैं। मात्र अहमदाबाद में ही सूर्य-चिकित्सा में 45 मिनट तक सूर्य के दर्शन करने की स्थिति में 100 से अधिक साधक हैं। गुजरात, भारत व समग्र विश्व में सूर्य साधकों की संख्या बहुत बड़ी है|
अहमदाबाद में रतिलाल कांसोदरिया नामक एक विश्व-प्रसिद्ध शिल्पी रहते हैं। उनकी माँ दीवाळी बा 106 वर्ष की उम्र में भी पूरी तरह चुस्त-दुरुस्त हैं। आराम से चलती-फिरती हैं। एक दिन दोपहर के भोजन में उन्होंने दो के स्थान पर एक ही रोटी ली। रतिभाई ने पूछा कि, “माँ, आज क्यों एक ही रोटी खाई ?” दीवाळी बा ने जवाब में कहा कि जब वे कुछ देर धूप में बैठी थीं, तब एक रोटी सूरज दादा से मिल गई।
गाँव के निरक्षर लोग भी जानते हैं कि सूरज दादा भोजन कराते हैं। लाभशंकर ठाकर ने सुंदर बाल-कथाएँ लिखी हैं, उसमें एक कहानी है, ‘धूप के पापड़’। हीरा रतन माणेक ने पता लगाया कि धूप के पापड़ ही नहीं, उसकी रोटी, भाखरी, पित्ज़ा और कई व्यंजन भी होते हैं।
यह सारी बात जानने के बाद हमारे एक मित्र ने कहा कि यदि उचित तरीके से सूर्य चिकित्सा का उपयोग हो, तो भारत की भुखमरी की समस्या को भी हल किया जा सकता है। सूर्य से कैलोरी प्राप्त कर लोग निश्चित ही अपनी खुराक कम कर सकते हैं। जो सूर्य साधक, अधिक साधना करते हैं, वे सूर्यऊर्जा और पानी पर ही जीवन-निर्वाह कर सकते हैं|
दुनिया का सबसे बड़ा रसोई घर तो सूरजदादा ही हैं। उनके द्वारा पकाए फल-फूल खा कर अरबों प्राणी जीवित हैं। अमरेली के बाबूभाई चौहान ने न्यू डायट सिस्टम की शोध की है (जिसके विश्व में 10 करोड़ से अधिक प्रैक्टिशनर हैं)। उनका कहना है कि इंसान को तो मात्र सूरज द्वारा पकाया हुआ ही खाना चाहिए। उनके द्वारा प्रस्तुत भोजन की नई पद्धति रसप्रद है। वे रोगमुक्त भारत का अभियान चला रहे हैं।
कोविड 19 (COVID 19) ने इन दिनों समग्र विश्व में कहर बरपाया है और तब सूर्य-ऊर्जा चिकित्सा पद्धति दुनिया के लिए वरदान सिद्ध हो सकती है। यदि कोरोना पाजिटिव मरीजों पर सूर्य चिकित्सा आजमाई जाए तो आश्चर्यजनक परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। कोरोना उपचार के लिए वैकल्पिक चिकित्सा के रूप में सरकार ने जिस प्रकार आयुर्वेद को छूट दी है, उसी प्रकार सूर्य चिकित्सा, शिवाम्बु व जल-चिकित्सा को आजमाने की भी मंजूरी मिलनी चाहिए।
इनके अलावा भी कई लोग सूर्य चिकित्सा का लाभ लेकर अपनी रोग-प्रतिकारक शक्ति बढ़ा रहे हैं। जबरन आए मेहमान की तरह कोरोना जाने का नाम भी नहीं ले रहा है और ऐसे में यदि उसे हमें हमारे शरीर में प्रविष्ट होने से रोकना हो तो प्रतिकार शक्ति बढ़ाने के अलावा अन्य और कोई दूसरा विकल्प उपलब्ध नहीं है।
जैसे जीवन के सत्य सरल होते हैं, उसी तरह शरीर के सभी रोगों के समाधान भी सरल हैं, यदि उनका सामना प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति से किया जाए। भारत देश के लिए समय आ गया है कि अब प्राकृतिक, सुगम व नि:शुल्क चिकित्सा पद्धतियों के माध्यम से राष्ट्र को निरामय बनाएँ।
(सूर्य चिकित्सा पद्धति पर अमल करने से पहले अहमदाबाद स्थित ‘आदर्श अहमदाबाद’, नेहल अपार्टमेंट, कॉमर्स छह रास्ता, स्थानकवासी जैन उपाश्रय के पास, सर्वोत्तम नगर सोसायटी, नवरंगपुरा, अहमदाबाद, 380009, फोन नंबर 079- 26565416 पर संपर्क करें। आप आदर्श अहमदाबाद फेसबुक पृष्ठ देख कर भी विशेष जानकारी प्राप्त कर सकते हैं )|
Post a Comment