PM का ‘प्रतिशोध पैटर्न’ : 11-12 दिन में ही दिया जवाब
18 सितंबर, 2016 को उरी में 19 जवानों की शहादत
11 दिन बाद 28 सितंबर, 2016 को सर्जिकल स्ट्राइक
14 फरवरी, 2019 को पुलवामा में 40 जवानों की शहादत
12 दिन बाद 26 फरवरी, 2019 को एयर स्ट्राइक
विश्लेषण : कन्हैया कोष्टी
अहमदाबाद (17 जून, 2020)। याद कीजिए 24 सितंबर, 2016 का दिन, जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने केरल के कोझिकोड में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था, ‘उड़ी में शहीद हुए जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा।’
याद कीजिए 15 फरवरी, 2019 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा किया गया ट्वीट, जिसमें मोदी ने कहा था, ‘पुलवामा में सीआरपीएफ के जवानों पर हुआ हमला बेहद घृणित है। मैं इस कायराना हमले की कठोर निंदा करता हूं। हमले में शहीद हुए जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। पूरा देश शहीदों के परिवार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है। प्रार्थना करता हूं कि घायल जल्द ठीक हों।’
और अब फिर एक बार आज ध्यान से तथा बार-बार सुनिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का राष्ट्र के नाम यह संबोधन, जिसमें वे गलवान घाटी में हुई झड़प के 72 घण्टों के भीतर पहली प्रतिक्रिया दे रहे हैं। मोदी ने वीरगति को प्राप्त बलिदानों को श्रद्धांजलि दी और देश की एकता-संप्रभुता को अक्षुण्ण बनाए रखने की बात कहते हुए चीन को चेतावनी भी दी कि वह किसी भी तरह के भ्रम या संशय में न रहे कि उकसावे पर भारत चुप रहेगा।
हालाँकि प्रधानमंत्री की इस प्रतिक्रिया में ध्यान देने वाली बात यह है कि 24 सितंबर, 2016 और 15 फरवरी, 2019 की तरह 17 जून, 2020 को भी मोदी ने ‘व्यर्थ’ शब्द प्रयोग किया। मोदी ने कहा, मैं देश को भरोसा दिलाना चाहता हूँ कि जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। भारत की अखडता, संप्रभुता की रक्षा करने से हमें कोई रोक नहीं सकता। किसी को भ्रम या संदेह नहीं होना चाहिए कि भारत शांति चाहता है, लेकिन उकसाने पर उचित जवाब देने में सक्षम है।’
बड़ी संख्या में जवानों के बलिदान पर मोदी की यह लगातार तीसरी ऐसी प्रतिक्रिया थी, जिसमें ‘व्यर्थ’ शब्द प्रयोग किया गया। इस ‘व्यर्थ’ में ही छिपा है मोदी के प्रतिशोध का अर्थ। मोदी ने इससे पहले जब दो बार ‘व्यर्थ’ शब्द प्रयोग किया था, तब भारत ने बलिदान हुए जवानों की शहादत का उनकी 13वीं से पहले बदला ले लिया था।
इस बार भी मोदी ने यदि कहा है कि शहीद हुए जवानों का बलिदान ‘व्यर्थ’ नहीं जाएगा, तो अब यह तय समझिए कि मोदी इन 20 जवानों की तेरहवीं से पहले उनके हत्यारे चीनियों का चौथा ज़रूर करेंगे, तरीक़ा कोई भी हो सकता है और हत्यारे चीनियों के चौथे की तारीख़ भी आप पक्की समझिए। मोदी निश्चित रूप से 27 जून से पहले कुछ ‘बड़ा’ करेंगे।
पूरी मोदी सरकार एक्शन में
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री एस. जयशंकर, गृह मंत्री अमित शाह, चीफ ऑफ डिफेंस बिपिन रावत, तीनों सेनाओं की सक्रियता भी यही संकेत दे रही है। मोदी ने जहाँ 19 जून को सर्वदलीय बैठक बुलाई है, वहीं 21 जून को मोदी विश्व योग दिवस पर फिर एक बार राष्ट्र को संबोधित करेंगे। ऐसे में संभावना है कि चीन पर मोदी चुप नहीं बैठेंगे।
वैसे भी बात जवानों के बलिदान तक पहुँचती है, तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बर्दाश्त नहीं करते। यह बात हम इसलिए दावे के साथ कह रहे हैं, क्योंकि इसका इतिहास साक्षी रहा है। अतीत में जहाँ तत्कालीन केन्द्र सरकारों का सेना के जवानों की शहादत पर श्रद्धांजलि तक सीमित कार्यक्रम होता था, वहीं मोदी सरकार का पिछले छह वर्षों का रिकॉर्ड आने वाले भविष्य की स्पष्ट झाँकी करा रहा है।
देश में जब-जब सेना को लक्ष्य बनाया जाता है, आम भारतीयों का ख़ून खौल उठता है। यह सही है कि 1965 के बाद अधिकांशत: जवानों की शहादत पाकिस्तानी सेना या उसके समर्थित आतंकवादियों के आक्रमण में हुई और जन-सामान्य के आक्रोश का केन्द्र पाकिस्तान रहा, परंतु पाँच दशकों में पहली बार 136 करोड़ भारतीयों में आक्रोश की ज्वालामुखी का मुख सर्वकालीन दगाबाज़, विश्वासघाती और विस्तारवादी चीन की ओर है।
केन्द्र शासित प्रदेश लद्दाख में गलवान घाटी में स्थित भारत-चीन वास्तविक नियंत्रण (LAC) पर चीनी सैनिकों की बर्बरता के कारण भारत के 20 जवानों की शहादत को लेकर जन-साधारण का आक्रोश सोशल मीडिया पर भी देखा जा रहा है, परंतु अधिकांश भारतीयों के इस आक्रोश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, उनके नेतृत्व, उनकी कार्यक्षमता और उनकी राजनीतिक-सैन्य निर्णायक इच्छाशक्ति के प्रति विश्वास भी दिखाई दे रहा है।
सिर्फ़ बोला नहीं, करके दिखाया मोदी ने
नरेन्द्र मोदी ने 26 मई, 2014 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। उनके कार्यकाल में जवानों पर पहला बड़ा हमला 18 सितंबर, 2016 को हुआ। जम्मू-कश्मीर के उड़ी में आतंकवादियों द्वारा किए गए इस हमले में 40 जवान शहीद हुए। पूरे देश में पाकिस्तान के विरुद्ध आक्रोश भड़क उठा। चहुँओर से सरकार पर दबाव बनाया गया। विपक्षी दलों ने मोदी को आज की तरह ही उस समय भी निशाना बनाया। मोदी ऊपर से मौन रहे। केवल ट्विटर पर कह दिया कि जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा।
आम लोगों ने यही समझा था कि मोदी ने पूर्ववर्ती सरकारों और प्रधानमंत्रियों की तरह ट्वीट कर ख़ानापूर्ति कर दी, परंतु कोई नहीं जानता था कि मोदी प्रतिशोध की तैयारी कर रहे थे। इधर जवानों की शहादत हुई, उधर मोदी ने बदला लेने के मिशन पर काम शुरू कर दिया था।
यही कारण है कि शहीद हुए 40 जवानों की तेरहवीं से पहले मोदी सरकार ने पाकिस्तान में घुस कर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में सर्जिकल स्ट्राइक कर दी। सेना उड़ी के जवानों की शहादत के 11वें दिन ही 28 सितंबर, 2019 को पीओके में घुस कर आतंकवादियों का विनाश कर डाला। सिर्फ 11 दिन में मोदी ने बदला ले लिया।
जब जनता को भरोसा हो गया कि जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा
मोदी के पहले कार्यकाल में ही 14 फरवरी, 2019 को फिर एक बार जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस बल (CRPF) के काफिले पर आतंकवादी हमला हुआ और 19 जवान शहीद हो गए। पूरे देश में फिर एक बार आक्रोश था। हालाँकि इस बार आक्रोश के साथ आशा भी थी, ‘मोदी कुछ न कुछ ज़रूर करेंगे’ और मोदी ने किया। मोदी ने 72 घण्टे के भीतर ही प्रतिक्रिया दी थी कि शहीद हुए जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा और यही हुआ।
शहीद 19 जवानों की तेरहवीं से पहले ही मोदी ने फिर एक बार पीओके में घुस कर एयर स्ट्राइक करवाई। 14 फरवरी को सीआरपीएफ जवान शहीद हुए और 12वें दिन यानी 26 फरवरी को ही मोदी सरकार ने दोबारा पीओके में आतंकवादियों की कब्रें ख़ोद दीं।
तो इस बार चुप कैसे रहेंगे मोदी ?
136 करोड़ भारतीयों (कुछ अपवादों को छोड़ कर) को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सुदृढ़ छवि पर भरोसा है। जिन लोगों को यह अच्छी तरह याद है कि मोदी जवान का बलिदान बर्दाश्त नहीं करते, वे यह जानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 14 जून, 2020 की रात गलवान घाटी में बलिदान हुए भारत के 20 जवानों की तेरहवीं से पहले चीन का भी हिसाब चुकता करके ही रहेंगे।
यह सही है कि उड़ी व पुलवामा के शहीद सीधे तौर पर पाकिस्तानी सेना के शिकार नहीं हुए थे और इसलिए भारत के लिए आतंकवाद के विरुद्ध पीओके में घुस कर सर्जिकल स्ट्राइक तथा एयर स्ट्राइक करना आसान था, जबकि गलवान घाटी में जो जवान शहीद हुए हैं, वे दो देशों के सैनिकों की झड़प में शहीद हुए हैं तथा यह दो देशों के बीच का मामला है।
ऐसे में चीन के साथ हिसाब चुकता करने का रास्ता आसान नहीं है, परंतु यह बात भी उतनी ही सही है कि यदि मोदी ने कहा है कि बलिदानियों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा और यदि मोदी बलिदानी जवानों की तेरहवीं से पहले प्रतिशोध लेने के पैटर्न पर इस बार भी काम करते हैं, तो 27 जून, 2020 से पहले चीन को उसी की भाषा में कोई न कोई घातक उत्तर अवश्य मिलेगा, जिससे चीनी सेना ही नहीं, बल्कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी हिल जाएँगे। देशवासियों को केवल धैर्य एवं विश्वास बनाए रखने की आवश्यकता है।
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