आलेख : कन्हैया कोष्टी
अहमदाबाद, 31 दिसंबर, 2020 (बीबीएन)। भारत की वर्तमान राजनीति में सर्वाधिक चर्चित, लोकप्रिय एवं प्रधानमंत्री के पद पर विराजित नरेन्द्र मोदी राष्ट्र पर आए कोरोना महामारी संकट के बाद लगातार संन्यासी-से मुखमंडल के साथ दिखाई दे रहे हैं। यद्यपि हम आज नरेन्द्र मोदी की बात नहीं करने जा रहे हैं। आज हम राजनीति के एक ऐसे संन्यासी की बात करने जा रहे हैं, जिसने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद ‘आयरन लैडी’ के रूप में उभरीं इंदिरा गांधी को ‘पिघला’ दिया था, ‘गला’ दिया था।
वर्तमान पीढ़ी कदाचित् भारत में पहली बार लगे आपातकाल 1975 के विषय में तो जानती होगी और कदाचित् थोड़ा-बहुत ये भी जानती होगी कि वह आपातकाल क्यों लगाया गया था ? परंतु आज के लोग ये नहीं जानते होंगे कि इंदिरा गांधी को किसके कारण आपातकाल लगाने पर विवश होना पड़ा था ?
स्वतंत्र भारत के इतिहास का सर्वाधिक कलंकित पृष्ठ यदि कोई है, तो वह पूर्ण बहुमत वाली सरकार की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा 25 जून, 1975 को लगाया गया आपातकाल (EMERGENCY) है। आज 45 वर्षों के बाद भी कांग्रेस सदैव अपनी पुरोधा इंदिरा गांधी के इस क़दम पर न केवल लज्जित, अपितु निरुत्तर भी रही है।
आज हम आपको बताने जा रहे हैं उस व्यक्ति के विषय में, जिसके कारण इंदिरा गांधी को देश में आपातकाल लागू करने पर विवश होना पड़ा। उस व्यक्ति का नाम है राजनारायण सिंह। आज राजनारायण 34वीं पुण्यतिथि है। 15 मार्च, 1917 को उत्तर प्रदेश में वाराणसी जिले के मोतीकोट में जन्मे राजनारायण का 31 दिसंबर, 1986 को निधन हुआ था। राजनारायण वह व्यक्तित्व थे, जो जन्म से नहीं, वरन् कर्म से विख्यात हुए थे और उसमें भी उनका एक कर्म उन्हें भारतीय इतिहास में सदा-सदा के लिए अमर बना गया। कौन-सा था वह एक कर्म ?
कौन थे राजनारायण ?
राजनारायण एक स्वतंत्रता सेनानी थे। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उन्होंने बढ़-चढ़ कर भाग लिया था। स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ-साथ राजनारायण संन्यासी भी थे। स्वतंत्रता से पूर्व वे कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के नेता था, परंतु स्वतंत्रता प्राप्ति के लगभग 3 वर्ष बाद राजनारायण ने जून, 1951 को संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की और उसके संयोजक बन गए। राजनारायण मूलत: उत्तर प्रदेश से थे। राजनारायण उत्तर प्रदेश में विधायक और विपक्ष के नेता जैसे पदों पर भी रहे। 1966 में राजनारायण पहली बार राज्यसभा पहुँचे।
लोकप्रिय इंदिरा को संन्यासी की चुनौती
स्वतंत्रता के बाद देश में कांग्रेस का एकछत्र शासन और वर्चस्व था। लोकसभा चुनाव 1951 से 1971 तक यही स्थिति रही। कुछ छोटे-मोटे दल कांग्रेस को चुनौतियाँ देते रहते थे। जब देश में लोकसभा चुनाव 1971 की घोषणा हुई, तब हमेशा की तरह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उत्तर प्रदेश की रायबरेली लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरीं। यद्यपि इंदिरा की जीत में कोई संदेह नहीं था, परंतु इसके बावजूद संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के संयोजक राजनारायण ने रायबरेली से चुनाव मैदान में उतर कर इंदिरा को सीधी चुनौती दी। जहाँ एक ओर इंदिरा गांधी पिता जवाहरलाल नेहरू की राजनीतिक विरासत के साथ रायबरेली से लगातार दूसरी बार चुनाव लड़ रही थीं, वहीं राजनारायण के लिए यह पहला चुनाव था, परंतु कदाचित् राजनारयण ये नहीं जानते थे कि इंदिरा के विरुद्ध उनका यह पहला चुनाव उन्हें भविष्य के भारत में घटने वाली एक कलंकित घटना के लिए निमित्त बनाने जा रहा है। यद्यपि चुनाव परिणाम अपेक्षा के अनुसार ही आया और इंदिरा गांधी चुनाव जीत गईं। इतना ही नहीं, लोकसभा चुनव 1971 में कांग्रेस ने देश भर में 352 सीटें जीतीं और इंदिरा गांधी पुन: प्रधानमंत्री बन गईं।
इंदिरा की रायबरेली जीत पर प्रश्नचिह्न
दूसरी तरफ़ जिस रायबरेली सीट से इंदिरा जीती थीं, वहाँ उनकी जीत पर विपक्ष ने बड़ा प्रश्नचिह्न लगा दिया। राजनारायण सहित समूचे विपक्ष ने यह गंभीर आरोप लगाया कि इंदिरा ने सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग कर रायबरेली से चुनाव जीता और इस आरोप के साथ ही देश में 25 जून, 1975 को लगने वाले आपातकाल की नींव पड़ी।
‘आयरन लैडी’ का उदय और आपातकाल का कलंक
लोकसभा चुनाव 1971 मार्च महीने में सम्पन्न हुए थे और दिसम्बर में ही भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ गया। केवल 13 दिनों तक चले इस युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को न केवल भीषण पराजय का स्वाद चखाया, बल्कि उसके दो टुकड़े करके नए राष्ट्र बांग्लादेश का निर्माण भी कराया। पाकिस्तान को इतिहास की सबसे बड़ी एवं भयंकर चोट देने के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी समूचे देश एवं दुनिया में आयरन लैडी ऑफ इंडिया के रूप में विख्यात हो गईं। उनके साहस की चौतरफ़ा प्रशंसा हो रही थी, परंतु दूसरी ओर विपक्षी दल रायबरेली से इंदिरा की जीत के विरुद्ध लगातार मोर्चा खोले हुए थे। इसी क्रम में राजनारायण ने रायबरेली से इंदिरा के निर्वाचन को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चुनौती दी। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने लंबी सुनवाई के बाद ये आरोप सही पाए कि रायबरेली में चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग हुआ, धांधली की गई। हाई कोर्ट ने 12 जून, 1975 को इंदिरा गांधी के निर्वाचन को अवैध ठहरा दिया और इंदिरा विचलित हो गईं। इंदिरा ने पहले तो न्यायपालिका के माध्यम से अपने निर्वाचन को वैध ठहराने का मार्ग अपनाया और उच्च न्यायालय के निर्णय को उच्चतम् न्यायालय में चुनौती दी। इंदिरा को उस समय क़रारी राजनीतिक चोट लगी, जब 24 जून, 1975 को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यालाय के निर्णय को उचित ठहराया और रायबरेली से इंदिरा के निर्वाचन को अवैध घोषित कर दिया तथा राजनारायण को विजेता घोषित कर दिया। इससे इंदिरा पूरी तरह झल्ला गईं। उच्चतम् न्यायालय ने इंदिरा को प्रधानमंत्री बने रहने की अनुमति दी थी। इंदिरा के पास देश के किसी अन्य निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव-उप चुनाव लड़ने अथवा किसी भी राज्य से राज्यसभा चुनाव लड़ कर सांसद बनने का विकल्प था। वे ऐसा करके पीएम बनी रह सकती थीं, परंतु सुप्रीम कोर्ट से मिली पटखनी इंदिरा के अहंकार एवं राजनीतिक वर्चस्व पर चोट पहुँचाई थी। इसीलिए इंदिरा गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के कुछ ही घण्टों के भीतर एक ऐतिहासिक एवं कलंकित निर्णय कर डाला। इंदिरा ने 24/25 जून, 1975 की मध्य रात्रि 12.00 बजे देश में आपातकाल की घोषणा कर दी। इस प्रकार पाकिस्तान को पटखनी देकर आयरन लैडी के रूप में उभरीं इंदिरा पर आपातकाल का कलंक भी हमेशा-हमेशा के लिए लग गया और इसके एकमात्र निमित्त बने थे राजनारायण।
पहले मुकदमा, फिर चुनाव में दी मात
इंदिरा गांधी को न्यायपालिका के माध्यम से पहली बार रायबरेली से चुनावी हार का स्वाद चखाने वाले राजनारायण देश की कांग्रेस विरोधी राजनीति में नायक बन कर उभर चुके थे। आपातकाल के दौरान जहाँ एक ओर इंदिरा गांधी विरोधियों पर दमनचक्र चला रही थीं, वहीं जयप्रकाश नारायण सहित अनेक नॉन-कांग्रेस नेताओं ने इंदिरा के विरुद्ध प्रचंड जनमत तैयार कर डाला। जनमत के भारी दबाव के चलते इंदिरा को लोकसभा चुनाव 1977 की घोषणा करनी पड़ी और इस चुनाव में एक ओर देश की जनता ने कांग्रेस को सत्ता से बेदख़ल कर दिया, वहीं रायबरेली में पुन: एक बार राजनारायण ने इंदिरा गांधी को पराजित कर दिया। इंदिरा के लिए देश की सत्ता और संसद दोनों के रास्ते बंद हो गए।
राजनारायण का अटूट रिकॉर्ड
राजनारायण ने रायबरेली से इंदिरा को 2-2 बार हरा कर वह रिकॉर्ड बनाया, जो आज तक कोई नहीं तोड़ सका। जी हाँ ! राजनारायण से पहले भारत में लोकसभा चुनाव 1951 से 1967 तक किसी नेता ने प्रधानमंत्री को चुनाव में नहीं हराया था। इतना ही नहीं, राजनारायण का यह रिकॉर्ड आज भी अटूट है। लोकसभा चुनाव 1984 से 2019 तक के इतिहास में भी कोई नेता किसी प्रधानमंत्री को उसकी सीट से चुनावी मात देने में सफल नहीं हुआ है।
ऐसे थे राजनारायण
राजनारायण कोई साधारण नेता या व्यक्ति नहीं थे। उस दौर के प्रखर समाजवाद के नायक डॉ. राममनोहर लोहिया के शिष्यों में यदि कोई अनुपम शिष्य था, तो वे राजनारायण ही थे। उन्होंने गृहस्थ होते हुए भी किसी भी संन्यासी से बढ़ कर संन्यासी का जीवन जया था। राजनारायण जैसा राजनेता आज कदाचित् दुर्लभ है। राजनारायण के प्रति लोगों के आकर्षण का कारण था उनकी पद और पैसों के प्रति अनासक्ति।
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