विशेष टिप्पणी : कन्हैया कोष्टी
अहमदाबाद (10 मई, 2020)। चहुँओर कोरोना… कोरोना… कोरोना… के बीच विगत एक सप्ताह से अचानक कश्मीर एवं पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर यानी PoK चर्चा में आ गए हैं। कोरोना संकट, श्रमिकों की कहीं दर्दनाक-कहीं सुखद घर वापसी तथा कोरोना वायरस से फैली महामारी कोविड 19 के उपचार के लिए टीके की खोज में व्यस्त प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार का एक बड़ा हिस्सा ‘मिशन पीओके’ में जुटा हुआ है और लगता है कि धारा 370 की ‘मृत्यु’ की पहली बरसी के आने तक चौथी चढ़ाई आरंभ हो जाएगी।
जी हाँ ! मोदी सरकार 71-72 वर्ष पूर्व तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की ज़िद से भारत के माथे पर लगा PoK नामक कलंक अब सदा-सर्वदा के लिए धोने की तैयारी में है। मोदी सरकार 5/6 अगस्त, 2019 यानी विगत 9 महीनों से ‘मिशन पीओके’ में जुटी हुई थी, जिसे परिणाम तक ले जाने का समय अब आ गया लगता है। स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री एस. जयशंकर तथा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजित डोवाल ‘मिशन पीओके’ को अंतिम रूप देने में जुटे हुए हैं।
तीन-तीन बार जीत कर भी क्यों हारा भारत ?
15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्र हुआ भारत स्वयं में से जन्मे व नासूर बन चुके पड़ोसी पाकिस्तान के साथ अब तक तीन बार युद्ध लड़ चुका है, परंतु आश्चर्य की बात यह है कि हर युद्ध में भारत जीत कर भी हारा व ठगा हुआ सिद्ध हुआ है। भारत-पाकिस्तान युद्ध 1947 में भारत की बढ़ती विजयी सेना को रोक कर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भारत तथा अखंड कश्मीर के माथे पर पीओके का कलंक लगा गए, तो 1965 में हुए दूसरे युद्ध में भारत को अपनी बड़ी विजय की कीमत ‘ताश्कंद समझौते’ के साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की षाड्यांत्रिक हत्या के रूप में चुकानी पड़ी। 1971 में हुए तीसरे युद्ध में भारतीय सेना लाहौर तक पहुँच गईं, परंतु तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उदारता ने भारत की जीत को फीका कर दिया और ‘शिमला समझौते’ के नाम पर एक और समझौता थोपा गया। वास्तव में भारत ने तो ताश्कंद से लेकर शिमला तक सभी समझौतों का पालन किया, परंतु पाकिस्तान ने सभी समझौतों को लातों से ठोकरें मारीं।
अंतिम व निर्णायक होगी चौथी चढ़ाई ?
भारत को तीन में से दो बार कश्मीर के कारण युद्ध में उतरना पड़ा। 1947 का पहला युद्ध कश्मीर के लिए हुआ। 1965 का दूसरा युद्ध भी कश्मीर के लिए हुआ। 1971 का तीसरा युद्ध भारत ने स्वार्थपूर्ण परोपकार करते हुए किया। अब तैयारी हो रही है चौथी चढ़ाई की। हम यहाँ कारगिल युद्ध 1999 को आधिकारिक युद्ध के रूप में नहीं गिन रहे, क्योंकि वह पाकिस्तानी सेना का भारत में अतिक्रमण के विरुद्ध लड़ा गया था। यद्यपि यह भी पाकिस्तान के कश्मीर हड़पने के षड्यंत्र का ही हिस्सा था, जिसे भारतीय सेना ने नियंत्रण रेखा (LoC) में रह कर जीता था। यदि सीमाओं पर लड़े गए युद्धों की बात करें, तो अब भारत 1947, 1965 व 1971 के बाद चौथी व अंतिम निर्णायक चढ़ाई की तैयारी कर रहा है। यह चौथा युद्ध ‘मिशन पीओके’ के लिए होगा, जिसके माध्यम से भारत 1 जनवरी, 1949 को भारत के माथे पर थोपे गए PoK और LoC नामक दो कलंक मिटाने वाला है।
‘ज़िद्दी जवाहर’ की एक भूल से जन्मे PoK-LoC
भारत जब 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्र हुआ, तब नि:संदेह उसकी झोली कश्मीर से रिक्त थी। तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल गृह मंत्री होने के नाते अखंड भारत के निर्माण में जुटे हुए थे, परंतु दुर्भाग्य से तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने स्वयं के कश्मीरी होने का हवाला देते हुए कश्मीर के विलय का विषय अपने कार्यक्षेत्र में रखा। कश्मीर के विषय में नेहरू का एक ‘जिद्दी’ रूप सामने आया। नेहरू पूर्णत: कश्मीर के मसीहा माने जाने वाले शेख अब्दुल्ला की सलाह पर काम कर रहे थे। यही कारण है कि नेहरू ने कश्मीर को लेकर एक के बाद कई ग़लतियाँ कीं, जिसके चलते भारत को विरासत में पीओके, एलओसी, धारा 370 तथा 35ए जैसी कई बुराइयाँ मिलीं।
‘जिद्दी जवाहर’ की पहली ‘अक्षम्य’ भूल
कश्मीर को स्वतंत्र रखने का मोह महाराजा हरि सिंह को उस भारी पड़ गया, जब पाकिस्तान ने कबाइलियों के भेष में 22 अक्टूबर, 1947 को कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। हरी सिंह ने नेहरू से बार-बार सहायता मांगी, परंतु नेहरू ने भारतीय सेना भेजने में 5 दिन का विलंब किया। 27 अक्टूबर, 1947 को जब भारतीय सेना कश्मीर को बचाने के लिए पहुँची, तब तक पाकिस्तानी सेना कश्मीर के एक तिहाई से अधिक हिस्से पर कब्ज़ा कर चुकी थी।
‘जिद्दी जवाहर’ की दूसरी ‘अक्षम्य’ भूल
जब भारतीय सेना पूरे दम-खम के साथ कश्मीर से पाकिस्तानी कबाइलियों व सेना को खदेड़ रही थी। चलते युद्ध के बीच नेहरू ने 2 नवंबर, 1947 को दूसरी भूल की, जब उन्होंने आकाशवाणी पर प्रसारित अपने संदेश में कहा कि भारत संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) की देखरेख में कश्मीर में जनमत संग्रह कराएगा। युद्ध के बीच नेहरू की इस ‘शांतिवाणी’ ने जवानों के मनोबल को गहरी ठेस पहुँचाई।
‘जिद्दी जवाहर’ की तीसरी ‘अक्षम्य’ भूल
नेहरू की तीसरी भूल वास्तव में अक्षम्य थी। यूएन के कहने व शेख अब्दुल्ला की सलाह पर नेहरू ने 1 जनवरी, 1949 को अचानक युद्ध विराम की घोषणा कर दी। यह इतनी बड़ी भूल थी, जिसका अनुमान स्वयं नेहरू का नहीं था। नेहरू की कश्मीर नीति से सरदार पटेल ही नहीं, वरन् विधि मंत्री व संविधान निर्माता डॉ. बाबासाहब अंबेडकर भी निरंतर असहमति जता रहे थे, परंतु ‘जिद्दी जवाहर’ किसी की सुनने को तैयार नहीं थे।
नेहरू की तीसरी भूल का सबसे बड़ा दुष्परिणाम यह हुआ कि युद्ध विराम की घोषणा के समय कश्मीर का आधे से अधिक हिस्सा पाकिस्तानी सेना के कब्ज़े में रह गया और इसके साथ ही पीओके शब्द का उदय हुआ। इतना ही नहीं, यूएन ने युद्ध विराम के समय भारत व पाकिस्तान के अधिकार वाले क्षेत्रों के बीच नियंत्रण रेखा (LoC) खींच दी। इस प्रकार भारत-पाकिस्तान सीमा के स्थान पर एलओसी का जन्म हुआ।
‘जिद्दी जवाहर’ की चौथी ‘अक्षम्य’ भूल
यूएन के दबाव व शेख अब्दुल्ला के प्रभाव में नेहरू निरंतर कश्मीर में भूलों को दोहराते रहे। युद्ध विराम व उसकी शर्तों का पाकिस्तान ने कोई पालन नहीं किया। इधर नेहरू ने लंदन दौरे पर रहते हुए 27 अक्टूबर, 1949 को भारतीय संविधान में धारा 370 जुड़वा दी। नेहरू की इस चौथी भूल ने न केवल पीओके की वापसी पर बड़ा प्रश्नचिह्न लगा दिया, वरन् जितना कश्मीर भारत में था, उसे भी भारत की मुख्य धारा से जुड़ने में बड़ा विघ्न पैदा कर दिया। इसके दुष्परिणाम देश ने 70 वर्षों तक देखे और भोगे।
कश्मीर को नेहरू के साये से उबार रहे मोदी
कश्मीर को भारत से ‘निरंकुश’ व पाकिस्तान व उसके आतंकियों के ‘प्रभाव’ के हवाले छोड़ नेहरू तो 27 मई, 1964 को दुनिया को अलविदा कह गए। नेहरू के बाद सत्ता में आए उनके वंशज इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी तक ने अपने पूर्वज की भूलों को भूल मानने का साहस तक नहीं दिखाया, तो सुधारने का तो प्रश्न ही कहाँ उठता ? सोनिया गांधी व राहुल गांधी के प्रभाव वाली डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार ने भी कश्मीर को गंभीरता से नहीं लिया, परंतु प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सत्ता संभालते ही पहले कार्यकाल में कश्मीर घाटी को आतंकियों से रिक्त करने के लिए ऑपरेशन ऑल आउट चलाया एवं दूसरे कार्यकाल में मोदी व गृह मंत्री अमित शाह ने पहले 5/6 अगस्त, 2019 को धारा 370 व 35ए हटा कर पहले ‘मिशन कश्मीर’ को परिणाम तक पहुँचाया और अब तैयारी हो रही है ‘मिशन पीओके’ के प्रचंड प्रारंभ की।
डोवाल हैं ‘मिशन पीओके’ के कमांडर
‘मिशन पीओके’ के लिए अब मोदी सरकार पाकिस्तान पर चौथी, अंतिम व निर्णायक चढ़ाई करने की तैयारी कर रही है। मोदी सरकार के विदेश मंत्रालय (MFA) ने पहले पीओके में चुनाव पर आपत्ति व्यक्त करते हुए पाकिस्तान को पीओके को ख़ाली करने को कहा, तो भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने अपनी वेबसाइट पर पीओके का हाल-ए-मौसम दर्शाना शुरू किया। इसके बाद मैदान में आया सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (MIB), जिसने 8 मई से दूरदर्शन व आकाशवाणी पर पीओके वेदर बुलेटिन शुरू किया। इन सभी गतिविधियों के माध्यम से मोदी सरकार ने पाकिस्तान को स्पष्ट व कड़ा संदेश दे दिया कि ज़ल्द ही भारत पीओके की भूमि को अपने अधिकार क्षेत्र में लेने वाला है। इस पूरे सांकेतिक ऑपरेशन के पीछे एनएसए अजित डोवाल की भूमिका थी।
गिड़गिड़ाता रहेगा पाकिस्तान, पीओके बनेगा हिन्दुस्तान
पाकिस्तान 370 से लेकर अब तक पूरी दुनिया के सामने गिड़गिड़ाता रहा है और इस बार भी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने पीओके का मौसम दिखाने के भारत के निर्णय को यूएन की दुहाई देते हुए ख़ारिज कर दिया, परंतु उसकी सुनता कौन है ? इसी कारण भारत पाकिस्तान की चिल्ल-पौं व गिड़गिड़ाहट की अवगणना कर हाथी की तरह पीओके की तरफ आगे बढ़ रहा है। पाकिस्तान गिड़गिड़ाता रह जाएगा और पीओेके हिन्दुस्तान का हिस्सा बन जाएगा। चौथी चढ़ाई अंतिम होगी, जिसके बाद भारत-पाकिस्तान के बीच न केवल पीओके-एलओसी समाप्त हो जाएँगे, वरन् सीमाएँ भी निर्धारित हो जाएँगी।
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