आलेख : कवि प्रकाश ‘जलाल’
अहमदाबाद (1 मई, 2021)। गुजरात आज अपना 62वाँ स्थापना दिवस मना रहा है अर्थात् गुजरात की स्थापना को आज पूरे 61 वर्ष हो गए। वैसे तो साठ वर्ष हीरक जयंती कहलाता है, परंतु कोरोना संकट के चलते गुजरात में स्थापना दिवस को लेकर कोरोना विरोधी लड़ाई का उत्साह है तो है, परंतु उत्सव का कोई आयोजन नहीं किया गया। गुजरात की स्थापना 1 मई, 1960 को हुई। तब से लगभग अनेक प्राकृतिक आपदाओं का गुजरात ने प्रतिकार किया है। 1979 की मच्छू बांध दुर्घटना हो, 1998 का कंडला चक्रवात हो या 2001 का विनाशकारी भूकंप हो। हर आपत्ति रूपी अग्नि परीक्षा में गुजरात न केवल पूर्व से अधिक सुदृढ़ होकर उभरा, वरन् उसने प्रत्येक कालग्रास समान आपत्ति को स्वर्णिम अवसर में परवर्तित करके दिखाया। हाँ ! गुजरात के लोग उस भीषण अकाल को भी आशीर्वाद में परिवर्तित करने से नहीं चूके, जो 120 वर्ष पूर्व विक्रम संवत् 1956 (ईसवी सन् 1900) में पड़ा था। गुजरात में इस भीषण अकाल को ‘छप्पनियो दुकाळ’ त्रासदी के रूप में आज भी लोग याद करते हैं। इन सभी आपत्तियों में अकेली सरकार कुछ नहीं कर सकती थी। यह तो ख़ुमारी से भरे व साहसवृत्ति के स्वामी गुजरातियों का ही कलेजा था, जिसने इन आपत्तियों को न केवल झेला, अपितु उन्हें चुनौती देते हुए पुन: उठ खड़े हुए।
गुजरात में प्राकृतिक आपदाओं के इतिहास का वर्णन इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि गुजरात आज 19 वर्षों बाद पहली बार किसी बड़ी अथवा यों कहें कि 64 वर्षों के बाद पहली बार राज्यव्यापी प्राकृतिक आपदा का सामना कर रहा है। इतना ही नहीं, यह आपदा अकेले गुजरात पर नहीं, बल्कि भारत सहित समग्र विश्व में त्राहि-त्राहि मचा रही है, जिसका नाम है कोरोना (CORONA) महामारी। हम COVID 19 (कोविड 19) की विकरालता तो अच्छी तरह समझ चुके हैं। गुजरात में भी तीव्रता से कोरोना संक्रमण फैल रहा है। संकट की इस घड़ी में यह आँकड़ा थोड़ी राहत अवश्य देता है कि 88 लोगों ने कोरोना पर विजय पाई है।
गुजरात अर्थात् एक वाणिज्यिक-औद्योगिक राज्य, जहाँ कोरोना जैसा संकट न केवल जीवहानि कर रहा है, अपितु गत 24 मार्च से क्रियान्वित लॉकडाउन (LOCKDOWN) से राज्य की आर्थिक स्थिति पर करारा वज्राघात हो रहा है, परंतु गुजरात का आपत्तियों से निपटने का इतिहास महाविकराल कोरोना संकट के बीच एक नए उत्साह व ऊर्जा का संचार भरता है।
प्लेग से बदसूरत सूरत हुआ ख़ूबसूरत
गुजरात पर प्राकृतिक आपदाओं का वज्राघात समय-समय पर होता रहा है, जिसमें हम किसी क्रम का अनुसंधान न करते हुए सबे पहले दक्षिण गुजरात मुख्यालय तथा हीरा नगरी सूरत (SURAT) की बात करते हैं। सिल्क सिटी के रूप में भी विख्यात सूरत पर 1994 में PLAGUE ने आक्रमण किया। मुंबई के अस्पताल में भर्ती किए गए 3 सूरतियों में प्लेग पाए जाने के बाद समग्र सूरत महानगर प्लेग से भयाक्रांत हो गया। न्यूोमोनिक टाइप प्लेग ने देखते ही देखते पूरे सूरत को अपनी चपेट में ले लिया और महानगर पालिका, जिला व राज्य शासन-प्रशासन के लिए हालात से निपटने की विशाल चुनौती पैदा हो गई। समग्र महानगर में अफरा-तफरी तथा भारी अव्यवस्था फैल गई। प्लेग की रोकथाम के लिए रेलवे स्टेशन, बस अड्डों तथा हवाई अड्डों पर ताबड़तोड़ जाँच केन्द्र शरू किए गए। 23 सितंबर, 1994 को समग्र सूरत में स्कूल-कॉलेज, सिनेमा घर, बाग़-बगीचे आदि सार्वजनिक स्थल अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दिए गए। सूरत की जनसंख्या का एक चौथाई भाग सूरत से पलायन कर गया। यद्यपि वास्तव में सूरत में प्लेग के जो 6000 केस माने जा रहे थे, वे वास्तव में किसी अन्य बीमारी के थे और मृतकों की संख्या केवल 56 थी, परंतु इस प्लेग ने सूरत को ख़ूबसूरत रहने, बनने और बनाने की जो प्रेरणा दी, उसकी आज भी प्रशंसा की जाती है। आज सूरत गुजरात का सबसे स्वच्छ महानगर है।
कंडला तट को उजाड़ गया चक्रवात
चार वर्ष बाद ही साहसी व निर्भय गुजरातियों के लिए फिर एक बार परीक्षा का समय आया, जब 1 जून, 1998 को अरब सागर में ऊष्णकटिबंधीय चक्रवात (TROPICAL CYCLONE) का निर्माण हुआ। इस चक्रवात ने जून के पहले सप्ताह में पहले कमज़ोर होने के बाद पुन: प्रबल शक्ति के साथ गुजरात के कच्छ तट पर प्रहार किया। इस चक्रवात के चलते गुजरात का समृद्ध कंडला बंदरगाह तहस-नहस हो गया। कंडला सहित समग्र कच्छ समुद्री तट एवं जामनगर के समुद्री तट से टकराए चक्रवात ने दोनों जिलों में इतनी भारी तबाही मचाई कि 10 हज़ार से अधिक लोगों को जान गँवानी पड़ी तथा अरबों-ख़रबों का आर्थिक नुकसान हुआ। कंडला में चक्रवात की तीव्रता इतनी भीषण थी कि विराट समुद्री जहाज खिलौनों की तरह बिखरने लगे। तत्कालीन मुख्यमंत्री केूभाई पटेल को (मार्च-1997 में) पहली बार सत्ता संभाले अभी 15 महीने ही हुए थे कि गुजरात पर इतनी बड़ी आपत्ति आन पड़ी। इस चक्रवात ने कंडला बंदरगाह पर का करने वाले तथा आसपास बसे 10,000 से अधिक लोगों को मौत की नींद सुला दिया। प्रशासन प्रकृति के प्रकोप के आगे पूरी तरह लाचार था, परंतु आज वही कंडला गुजरात का सबसे समृद्ध व व्यस्ततम् बंदरगाह है। पूरा कच्छ व जामनगर भी संभल चुके हैं।
मिनटों में मोरबी ने ले ली जल समाधि
आइए अब आपको थोड़ा पीछे लिए चलते हैं, जब 11 अगस्त, 1979 को तत्कालीन राजकोट जिले का घड़ी नगर (WATHC CITY) मोरबी सौराष्ट्र की दोपहर में विश्राम की परंपरा को निभाते हुए आराम कर रहा था। मोरबी की जल सुविधा के लिए मच्छू नदी पर निर्मित मच्छू बांध 2 के ऊपरी इलाकों में लगातार 3 दिनों तक हुई भारी वर्षा के चलते यह बांध अचानक टूट गया। दोपहर 3.30 बजे मोरबी शहर में यह ख़बर फैल गई कि मच्छू 2 बांध टूट गया है। यद्यपि देश बेख़बर था। न गुजरात सरकार को पता था और न ही केन्द्र सरकार को। ख़बर बिल्कुल पक्की थी, क्योंकि 3.30 बजे ख़बर आई और अगले 10 मिनट में तो मच्छू 2 बांध का पानी पूरे मोरबी शहर में घुस आया। कुछ घण्टे पहले तक आबाद नज़र आ रहा मोरबी शहर 3.40 बजे तो डूबने लगा। चहुँओर हाहाकार मच गया। देखते ही देखते टूटे हुए मच्छू 2 बांध के पानी ने दो घण्टों के भीतर ही पूरे मोरबी शहर को डुबा दिया। बांध का पानी मोरबी शहर में इस क़दर घुसा कि लोग छतों पर जाकर भी जान नहीं बचा सके। इंसान के लिए जान बचाना मुश्किल था, तो पशुओं को कौन बचाता। पानी के भीषण प्रवाह ने मोरबी के मकानों और इमारतों को जमींदोज़ कर दिया। लोगों को संभलने का मौका ही नहीं मिला। चंद घण्टों पहले जो शहर आबाद था, वह अब लाशों के ढेर में तब्दील हो चुका था। कुछ ही मिनटों में मोरबी शहर ने जल समाधि ले ली। सैकड़ों की संख्या में लोग मारे गए। हजारों की संख्या में पशुओं की मौत हो गई। मोरबी इतनी बड़ी त्रासदी में है, यह ख़बर सबसे पहले बीबीसी रेडियो ने देश को सुनाई, तो पूरा देश स्तब्ध हो गया। ख़बर फैलते ही चहुँओर से मोरबी में राहत और बचाव कार्य आरंभ हुए। केन्द्र और राज्य सरकार केवल राहत कार्य ही शुरू कर सकी, क्योंकि बचाव कार्य करने का मौका तो कुदरत ने दिया ही नहीं था। पूरा गुजरात नष्ट हो चुके मोरबी के पुनर्वास में जुटा और आज वह मोरबी एक पृथक जिला बन चुका है तथा विकास की नई ऊँचाइयाँ छू रहा है।
भूकंप ने तोड़ी कमर, गुजरात ने विश्व को दिया ‘भूकंप-प्रूफ’ शब्द
26 जनवरी, 2001 को समग्र राष्ट्र 52वाँ गणतंत्र दिवस मना रहा था। गुजरात में भी राजधानी गांधीनगर में मुख्यमंत्री केशूभाई पटेल झंडारोहण समारोह में उपस्थित थे। इसी दौरान 7.7 की तीव्रता वाला महाविनाशकारी भूकंप आया। कच्छ की धरती से उठे भूकंप ने न केवल कच्छ, वरन् गुजरात के महत्वपूर्ण महानगरों अहमदाबाद, सूरत सहित कई क्षेत्रों में भारी विनाश मचाया। बड़ी-बड़ी इमारतें ढह गईं और लगभग 20,000 लोगों की मौत हो गई। इस भूकंप ने समृद्ध गुजरात की ऊँची-ऊँची इमारतों को खंडहर में बदल दिया और लाखों लोग जो जीवित बचे, उन्हें बेघर बना दिया। विश्व स्वास्थ्य संगठन, अमेरिकन रेडक्रॉस, हेल्पेज इंडिया जैसी वैश्विक संस्थाएँ, देश भर की संस्थाएँ, केन्द्र सरकार, गुजरात सरकार एवं कई राज्यों की सरकारों ने गुजरात की सहायता के लिए हाथ बढ़ाया, परंतु भूकंप ने जो विनाश किया था, उससे निपटने में यह सहायता पर्याप्त नहीं थी। सहायता के साथ पुन: उठ खड़ा होने का साहस भी आवश्यक था। मलबे में बदल चुके गुजरात ने फिर एक बार अपनी ख़ुमारी दिखाई तथा भवन निर्माण में प्रथम बार ‘भूकंप-प्रूफ’ शब्द जोड़ा। 19 वर्ष पूर्व खंडहर में तब्दील हो चुके कच्छ में 3 वर्षों में ही ऐसा पुनर्वास कार्य हुआ, जिसकी पूरे विश्व में मिसाल दी जाती है। इस पुनर्वास कार्य का नेतृत्व करने का अवसर नरेन्द्र मोदी को मिला, क्योंकि भाजपा हाईकमान ने तत्कालीन मुख्यमंत्री केशूभाई पटेल को भूकंप आपदा से निपटने में अक्षम मानते हुए 7 अक्टूबर, 2001 को मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री बना दिया।
‘छप्पनियो दुकाळ’ से ‘कोरोना विकराळ’ तक
पृथक गुजरात के गठन से पूर्व गुजरात ने वर्ष 1819 में कच्छ के रण में भूकंप का दंश झेला था, तो वर्ष 1900 (गुजराती विक्रम संवत् 1956) का भीषण अकाल तो गुजरात को तिल-तिल कर मरने पर विवश कर रहा था। ‘छप्पनियो दुकाळ’ के नाम से कुख्यात इस भीषण प्राकृतिक प्रकोप का भी गुजरात ने साहस के साथ सामना किया। 1 मई, 1960 को गुजरात के गठन के बाद भी राज्य में 2005 में भीषण बाढ़, 2009 में हेपेटाइटिस महामारी, 2015 में चक्रवात, 2000 में अहमदाबाद में एक साथ 20 इंच बरसात सहित कई आपदाएँ आईं और आज कोरोना नामक महामारी ने विकराल रूप धरा है, परंतु गुजरात इस महासंकट से उसी भाँति उबर आएगा, जिस प्रकार उसने आपत्तियों को अवसर में पलटने के मामले में पूरे देश में एक इतिहास रचा है।
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