विश्लेषण : कन्हैया कोष्टी
अहमदाबाद, 26 अप्रैल, 2021 (बीबीएन)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भारतीय जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी के साधारण कार्यकर्ता से लेकर गुजरात के मुख्यमंत्री तथा देश के प्रधानमंत्री पद तक पहुँचे नरेन्द्र मोदी अपने 50 वर्षों के सामाजिक-राजनीतिक संघर्ष काल में इस समय सबसे बड़े संकट का सामना कर रहे हैं। कोरोना संक्रमण, अस्पतालों में बेड तथा ऑक्सीजन की कमी से दम तोड़ते लोगों तथा उनके रोते-बिलखते परिजनों के दृश्य देख कर पूरा देश इस समय विचलित अवस्था में है, परंतु देश के सर्वोच्च नेता के रूप में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अविचलित और दृढ़ मनोबल के साथ स्थितियों को सुधारने में जुटे हुए हैं।
नरेन्द्र मोदी कोरोना साइक्लोन से अधिक से अधिक लोगों की सहायता करने के लिए 24X7 मिशन मोड पर हैं। न्यूज़ चैनलों, सोशल मीडिया और अख़बारों में प्रकाशित-प्रसारित भयावह दृश्यों तथा चित्रों के बीच भी मोदी उन जीवित एवं हताश लोगों का धैर्य के साथ मनोबल बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं, तो आलोचनाओं तथा निंदाओं के बीच कमियों को दूर करने के लिए लगातार लगे हुए हैं।
वैसे महासंकट की इस घड़ी में अवसरवादियों को मोदी की आलोचना करने का खुला मैदान मिल गया है, तो निराशावादियों की यह सोच होगी कि अब इस देश को भगवान ही बचा सकता है, परंतु जो लोग मोदी के 50 वर्षों के सामाजिक-राजनीतिक इतिहास को जानते हैं, वे आशावाद से भरे हुए होंगे, क्योंकि उन्हें अच्छी तरह मालूम है कि मोदी के सार्वजनिक जीवन में बड़े-बड़े संकट आते रहे हैं और मोदी हर संकट के लिए ब्लास्टर सिद्ध हुए हैं। इस यद्यपि इस बार मोदी के समक्ष सार्वजनिक जीवन का सबसे बड़ा महासंकट है, परंतु मोदी के डिज़ास्टर मैनेजमेंट को जानने वालों को पूरा भरोसा है कि वे इस बार भी देश को विकट स्थितियों से बाहर निकालेंगे।
आपातकाल में इंदिरा के हाथ नहीं आए मोदी
25 जून, 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अधिनायकवादी (तानाशाह) जैसा आचरण करते हुए देश में आपातकाल लगाया। इतना ही नहीं, इंदिरा सरकार ने मीडिया और विपक्ष पर प्रचंड प्रहार किया और आम जनता पर भीषण अत्याचार शुरू किए। अनेक विपक्षी नेताओं को जेल के पीछे डाल दिया गया। जनता पार्टी, भारतीय जनसंघ सहित समूचे विपक्ष ने इस तानाशाही के विरुद्ध दो साल संघर्ष किया। इन संघर्षशील नेताओं में संघ के स्वयंसेवक के रूप में नरेन्द्र मोदी भी अग्रिम पंक्ति में थे। सभी जानते हैं कि इंदिरा सरकार हज़ारों विपक्षी नेताओं को गिरफ़्तार कर जेल में डाला, परंतु मोदी को नहीं पकड़ सकी। मोदी ने वेश बदल कर सरकार विरोधी आंदोलन को मज़बूत बनाने में दृढ़तापूर्वक योगदान दिया।
मच्छू की विनाशलीला में मोदी का सेवा यज्ञ
11 अगस्त, 1979 को भारी वर्षा के चलते गुजरात में मोरबी स्थित मच्छू बांध ध्वस्त हो गया। बांध के पानी ने पूरे मोरबी में चहुँओर विनाश का जाल बिछा दिया। भारत ही नहीं, पूरा विश्व मच्छू बांध त्रासदी को लेकर दो बातों को हमेशा याद करता है। पहली, देश में घटी इस दुर्घटना का समाचार विदेशी मीडिया BBC रेडियो ने सबसे पहले प्रसारित किया था। दूसरा, मच्छू बांध त्रासदी पीड़ितों की सेवा में राज्य या केन्द्र सरकार से पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पहुँचा था। मोरबी पहुँचे संघ के हज़ारों स्वयंसेवकों में 29 वर्षीय नरेन्द्र मोदी भी शामिल थे। मोदी ने प्राकृतिक एवं मानवीय, दोनों प्रकार की त्रुटियों के कारण आई इस आपदा में संक्रमण सहित किसी भी प्रकार से अपनी परवाह किए बिना दिन-रात पीड़ितों की सेवा का महायज्ञ किया।
जब कंडला चक्रवात-भूकंप आपदा बने अवसर
इस बीच 1 जून, 1998 को कच्छ स्थित गुजरात के सबसे बड़े कंडला बंदरगाह पर विनाशकारी चक्रवात आया। 1987 में ही आरएसएस से भारतीय जनता पार्टी में आ चुके नरेन्द्र मोदी कंडला चक्रवात संकट के समय गुजरात से बाहर थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री केशूभाई पटेल को निर्बाध रूप से काम करने देने के उद्देश्य से भाजपा हाईकमान ने नरेन्द्र मोदी को दिल्ली बुला लिया था। कंडला चक्रवात के समय मोदी गुजरात से बाहर थे। दूसरी ओर 10 हज़ार लोगों की जान ले चुके कंडला चक्रवात के बाद उत्पन्न स्थिति से निपटने में केशूभाई सरकार लगातार विफल हो रही थी। आलोचनाएँ झेल रही केशूभाई सरकार की गद्दी को 26 जनवरी, 2001 को कच्छ में ही आए महाविनाशकारी भूकंप ने और हिला दिया। भाजपा हाईकमान ने आपत्तियों से निपटने में विफलता के आरोप झेल रहे केशूभाई पटेल को हटा कर नरेन्द्र मोदी को मुख्यमंत्री बनाया। इस प्रकार ये दोनों आपदाएँ नरेन्द्र मोदी के राजनीतिक कॅरियर के लिए वरदान सिद्ध हुईं, परंतु अब उनके समक्ष इस वरदान को वास्तव में जन-जन में साकार करने की चुनौती थी।
भूकंप के विनाश पर मोदी का विकास
7 अक्टूबर, 2001 को मुख्यमंत्री बनते ही नरेन्द्र के समक्ष 9 महीने पहले आए भीषण भूकंप से हुए विनाश से निपटने की पहाड़ जैसी चुनौती थी, परंतु मोदी ने इस आपत्ति को अवसर में पलट दिया। मोदी का आपदा प्रबंधन (डिज़ास्टर मैनेजमेंट) इतना ज़बरदस्त था कि कच्छ न केवल उठ खड़ा और दौड़ने लगा, अपितु श्रेष्ठतम् आपदा प्रबंधन एवं उच्च कोटि के भूकंप पुनर्वास कार्यों को कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए। विश्व में भूकंप आपदा से निपटने में लगने वाले औसत 7 वर्षों के मुक़ाबले मोदी ने गुजरात में 3 वर्ष में भूकंप पुनर्वास कार्य कर गुजरात-भारत सहित पूरे विश्व के समक्ष भूकंप डिज़ास्टर मैनेजमेंट का एक नया मॉडल प्रस्तुत किया।
मार-काट से चिरकालीन दंगामुक्ति तक
गुजरात अभी भूकंप त्रासदी से बड़ी मुश्किल से उबर रहा था, वहीं 27 फरवरी, 2002 को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एस 6 डिब्बे में आग लग गई या लगा दी गई। इस घटना अयोध्या से लौट रहे 59 कारसेवकों की मौत हो गई, जिसके चलते गुजरात भयंकर साम्प्रदायिक दंगों में की चपेट में आ गया। 28 फरवरी से अहमदाबाद, सूरत, वडोदरा सहित गुजरात के 500 से अधिक क्षेत्रों में भीषण दंगे छिड़ गए। चहुँओर मची मारकाट के बीच मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी पर आरोपों की वर्षा भी शुरू हो गई, परंतु आपदाओं-आलोचनाओं में अविचलित रहने के स्वभाव वाले मोदी ने 4 महीनों में ही गुजरात में चिरकालीन शांति स्थापित कर दी। चिरकालीन इसलिए, क्योंकि गुजरात का इतिहास साम्प्रदायिक दंगों से सना हुआ था, परंतु 2002 के दंगों के बाद गुजरात में न केवल मोदी के शासन काल में और न ही उनके बाद यानि पिछले 19 वर्षों में कोई साम्प्रदायिक दंगा नहीं हुआ। इतना ही नहीं, मोदी ने गुजरात के लोगों को विकास की ऐसी राह दिखाई, जिसमें जाति-धर्म का भेद नहीं था। यही कारण था कि हर नागरिक को लगने लगा कि शांति में ही लाभ है।
‘अमेरिकी वीज़ा’ बना राष्ट्रीय राजनीतिक वीज़ा
2002 के दंगों के बाद पूरे देश तथा दुनिया में नरेन्द्र मोदी के विरुद्ध इतना नकारात्मक प्रचार हुआ कि अमेरिका ने 2005 में मोदी को अमेरिकी वीज़ा देने से इनकार कर दिया। अमेरिका का यह इनकार नरेन्द्र मोदी के लिए नहीं, बल्कि भारत के एक राज्य के मुख्यमंत्री के लिए था, जो जनता द्वारा निर्वाचित था। अमेरिका के इस क़दम भारतीय जनता पार्टी का विरोध करना तो स्वाभाविक ही था, परंतु एक मुख्यमंत्री को वीज़ा नहीं देने के अमेरिकी सरकार का निर्णय पूरे भारत के लोकतंत्र के विरुद्ध माना गया। इसीलिए कांग्रेस-यूपीए के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार, कांग्रेस पार्टी सहित सभी नॉन-बीजेपी दलों को भी बेमन से ही सही, लेकिन मोदी के समर्थन में अमेरिका की आलोचना करनी पड़ी। इसके साथ ही अमेरिका ने एक प्रकार से मोदी को राष्ट्रीय राजनीति में जाने का वीज़ा दे दिया।
कोर्ट-सीबीआई से सद्भावना मिशन तक
गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी को 2002 के दंगों, फर्ज़ी एनकाउंटर आदि अनेक मुद्दों पर केन्द्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) सहित कई जाँच एजेंसियों तथा निचली कोर्टों से सुप्रीम कोर्ट तक चुनौतियाँ झेलनी पड़ीं। इन सबके बीच मोदी ने गुजरात विधानसभा चुनाव 2002 और 2007 में लगातार जीत दर्ज़ की। इसी बीच गुजरात में मोदी के विकास कार्यों के देश और दुनिया में तेज़ी से चर्चा होने लगी। इसके बाद नियति ने ऐसी स्थितियाँ उत्पन्न कीं कि मोदी ने 2011 में सद्भावना मिशन आरंभ किया और इसके माध्यम से देश और दुनिया के समक्ष गुजरात के धार्मिक भेदभाव रहित विकास के संदेश को जन-जन तक पहुँचाने का प्रयास किया। सद्भावना मिशन के साथ ही मोदी ने लगभग राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश की ओर प्रयाण कर लिया।
कोरोना महासंकट को भी मिलेगी महापराजय
26 मई, 2014 को पहली बार देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी ने अनेक चुनौतियों का सामना किया है और हर चुनौती को क़रारा जवाब भी दिया है। आतंकवादियों पर सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर एयर स्ट्राइक तथा कश्मीर से धारा 370 हटाने जैसे साहसी क़दमों से मोदी ने मज़बूत नेतृत्व का उत्तम नमूना पेश किया है। यद्यपि इस बार मोदी एक प्रधानमंत्री के रूप में अब तक का सबसे बड़ा कोरोना महासंकट का सामना कर रहे हैं, परंतु 50 दशक में 5 बड़ी तथा पचासों छोटी-बड़ी चुनौतियों तथा आपत्तियों से सफलतापूर्वक निपट कर मास्टर ऑफ डिज़ास्टर मैनेजमेंट बने नरेन्द्र मोदी इस बार भी कोरोना क्राइसिस के लिए ब्लास्टर सिद्ध होंगे।
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