आडवाणी ने धर्म के सहारे भाजपा को ऊँचाई दी
अटलजी ने कर्म के सहारे 6 वर्षों तक सत्ता संभाली
एक साथ कई लहरों पर सवार होकर सत्ता में लौटेंगे मोदी
आलेख : कन्हैया कोष्टी
अहमदाबाद, 08 फरवरी, 2024 : भारतीय जनता पार्टी (भाजपा-बीजेपी-BJP) अपनी स्थापना के 44 वर्ष पूरे होने से पहले ही अपनी सफलता के चरम पर पहुँच चुकी है। विश्व के सबसे बड़े राजनीतिक दल भाजपा को इस समय नरेन्द्र मोदी के रूप में सबसे सफल एवं लोकप्रिय नेता का नेतृत्व प्राप्त है और मोदी की ही गारंटी के साथ भाजपा देश में तीसरी बार लोकसभा चुनाव जीतने का दम भर रही है।
भाजपा के 2 से 302 सीटों तक पहुँचने की इस यात्रा में भाजपा को अपने पहले लोकसभा चुनाव 1984-85 में केवल 2 सीटें मिली थीं, लेकिन इसके बाद तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर आंदोलन का समर्थन कर हिन्दुत्व का मुद्दा आजमाया। आडवाणी ने धर्म का सहारा लिया और लोकसभा चुनाव 1989 में भाजपा की सीटें 2 से 85 पर पहुँच गईं। पार्टी केन्द्र में जनता दल नेता विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार में भागीदार भी बन गई, लेकिन पूर्ण सत्ता नहीं पा सकी। चूँकि आडवाणी के साथ धर्म तो था, परंतु सत्ता में रह कर कर्म का कोई परिणाम या प्रमाण नहीं था।
आडवाणी के हिन्दुत्व और उसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी के उदार चरित्र के कारण भाजपा लोकसभा चुनाव 1996 में 161 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी। वाजपेयी पहली बार प्रधानमंत्री बने, लेकिन 13 दिनों के लिए। लोकसभा चुनाव 1998 में अटल-आडवाणी की जोड़ी ने 182 सीटों के साथ प्रदर्शन सुधारा। वाजपेयी ने सरकार बनाने के लिए धर्म को पीछे छोड़ कर्म को प्राथमिकता देने के लिए धर्मनिरपेक्ष दलों के साथ मिल कर एनडीए गठबंधन बनाया और बहुमत के साथ सरकार बनाई। 13 महीने चली इस सरकार के कर्म (कार्यों) को जनता ने पसंद किया और लोकसभा चुनाव 1999 में भाजपा को पुन: 182 सीटें देते हुए एनडीए को बहुमत दिया। वाजपेयी फिर प्रधानमंत्री बने। तीन बार प्रधानमंत्री रहे वाजपेयी को एक भी बार पूर्ण बहुमत के साथ भाजपा के मूल एजेंडा पर कार्य करने का अवसर नहीं मिला।
इस प्रकार; आडवाणी के साथ धर्म था, लेकिन कर्म का अवसर नहीं था। इसलिए भाजपा सत्ता में भागीदारी तक ही पहुँची। दूसरी ओर वाजपेयी के साथ कर्म था, लेकिन धर्म नहीं था। इसलिए वाजपेयी भाजपा के आक्रामक मुद्दों से दूर रहे, कर्म भी काम नहीं आया और भाजपा लोकसभा चुनाव 2004 हार गई।
मोदी के साथ धर्म भी-कर्म भी, यही लहर पहुँचाएगी 400 पार
राजनीतिक विश्लेषक मोदी की इस हुंकार के बाद आँकड़ों का गणित बैठाने में जुट गए। कोई राज्यवार सीटों की स्थिति बता रहा है, तो कोई लोकसभा सीटवार पड़ताल करने का प्रयास कर रहा है कि अंतत: भाजपा को 370 सीटें मिलेंगी कैसे ? सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में भाजपा को कितनी सीटें जीतनी होंगी और 370 का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए दक्षिण का दुर्ग भेदना होगा। इतना कुछ करने के बाद भी कोई भी राजनीतिक पंडित भाजपा को 370 सीटें मिल ही जाने का दावा करने का साहस नहीं कर पा रहा है।
दूसरी ओर इन सब विश्लेषणों से परे यथार्थ का धरातल यह कहता है कि मोदी का दावा एक, दो या तीन नहीं; बल्कि कई लहरों पर सवार है। मोदी पहली बार प्रधानमंत्री पद पर गुजरात में मुख्यमंत्री के रूप में किए गए कार्य के बलबूते पहुँचे। लोकसभा चुनाव 2014 में केन्द्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस-संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग-यूपीए-UPA) के विरुद्ध तथा गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री के रूप में किए गए कार्यों (कर्म) के कारण नरेन्द्र मोदी के पक्ष में एक लहर थी, जिसके बल पर भाजपा को केन्द्र में पहली बार बहुमत मिला। दूसरी ओर लोकसभा चुनाव 2019 में मोदी अपने पाँच वर्षों के कर्म (कामकाज) के बल पर दोबारा सत्ता में आए। यद्यपि 2014 से 2024 तक के इस दस वर्षीय कार्यकाल में नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में भाजपा के एजेंडा में शामिल प्रमुख मुद्दों धारा 370 (कर्म) से लेकर राम मंदिर निर्माण (धर्म); दोनों को साधने में सफलता प्राप्त की। कर्म के मामले में धारा 370 के अलावा मोदी सरकार ने कई ऐसे महत्वपूर्ण कार्य किए हैं, जिनसे एक साधारण नागरिक को अपने भारतीय होने तथा धर्म के मामले में राम मंदिर के अलावा सांस्कृतिक पुनरुत्थान की दिशा में किए गए कार्य ऐसे किए हैं, जिनसे देश के 65 वर्षों से उपेक्षित रहे बहुसंख्यक वर्ग को स्वयं के बहुसंख्यक होने पर गर्व हो रहा है। इस प्रकार मोदी के पक्ष में देश में कई लहरें चल रही हैं और उन्हीं के भरोसे मोदी अपनी सरकार के 370 सीटों के साथ तीसरे टर्म की गारंटी दे रहे हैं।
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