क्या ‘ठाकरे’ की शिवसेना को हिन्दुत्व विरोधियों के खेमे में हो रही घुटन ?
क्या उद्धव के लिए ‘यही समय है, सही समय है’ एनडीए में लौटने का ?
सच होती दिखाई दे रही ‘भव्यभारत.कॉम’ की भविष्यवाणी
आलेख : कन्हैया कोष्टी
अहमदाबाद, 06 फरवरी, 2024 : महाराष्ट्र की राजनीति में पिछले दो दिनों से एक नई चर्चा ने जोर पकड़ा है। वैसे भव्यभारत.कॉम ने गत 30 जनवरी, 2024 को ही यह भविष्यवाणी कर दी थी, “जो बिहार में हुआ; अगर वह हो सकता है, तो महाराष्ट्र में भी हो सकता है और उद्धव ठाकरे फिर एक बार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग-NDA) में वापसी कर सकते हैं।” जब हमने यह भविष्यवाणी की, तब महाराष्ट्र की राजनीति में दूर-दूर तक ऐसी कोई संभावना नहीं दिख रही थी कि उद्धव का मन डोल सकता है; परंतु हमारी भविष्यवाणी के कुछ ही घण्टों बाद उद्धव ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा कर डाली। इतना ही नहीं; उद्धव उस वंदे भारत ट्रेन में भी सपत्नीक यात्रा करते नजर आए, जिसकी विपक्ष के किसी भी नेता ने शायद ही प्रशंसा की हो या यात्रा की हो।
उद्धव के इस बदले सुर से राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज़ हो गई है कि उद्धव कदाचित् एनडीए में उल्टे पाँव लौट सकते हैं, परंतु प्रश्न यह है कि आख़िर उद्धव का मन क्यों डोल रहा है ? क्या ‘ठाकरे’ झकझोर रहे हैं अपने पुत्र उद्धव के अंतरात्मा को ? क्या ‘ठाकरे’ अपने पुत्र उद्धव से प्रश्न कर रहे हैं, “जिस हिन्दुत्व के लिए मेरी शिवसेना ने इतने संघर्ष किए, जिस राम मंदिर आंदोलन के दौरान बाबरी मस्जिद को ढहाने की जिम्मेदारी सबसे पहले मैंने ली; उस हिन्दुत्व का आज जब स्वर्णिम काल आया है, तब मेरी शिवसेना और मेरा पुत्र उद्धव ‘हिन्दुत्व विरोधियों’ के साथ क्यों है और क्या कर रहा है ?”
जब हिन्दुत्व का उदय, दूर क्यों हैं उद्धव ?
आज जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में पूरे देश में सनातन धर्म और हिन्दुत्व का परचम लहरा रहा है, देश का सांस्कृतिक जीर्णोद्धार हो रहा है, समग्र देश में सनातन धर्म की जय-जयकार हो रही है; तब हिन्दुत्व के सबसे बड़े ठेकेदार रहे दिवंगत बालासाहब ठाकरे का आत्मा आज निश्चित ही प्रफुल्लित और प्रसन्न हो रहा होगा, परंतु क्या ठाकरे अपने पुत्र उद्धव ठाकरे की वर्तमान राजनीतिक स्थिति से खुश होंगे ?
अखंड शिवसेना के संस्थापक ठाकरे अपनी शिवसेना के टूटने और पुत्र उद्धव ठाकरे के कट्टर विरोधियों के खेमे में होने से निश्चित रूप से दु:खी ही होंगे; क्योंकि वह ठाकरे ही थे, जिन्होंने जीते-जी कई बार कहा था, “शिवसेना कभी भी कांग्रेस के साथ नहीं हो सकती।” इस बात में भी कोई संदेह नहीं है कि उद्धव को पिता ठाकरे के बयान अच्छी तरह याद होंगे।
उद्धव के बदले सुर के पीछे ठाकरे ?
आज देश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में जहाँ एक ओर कश्मीर से धारा 370 समाप्त हो गई, वहीं भाजपा तथा ठाकरे की शिवसेना के सबसे बड़े एजेंडा में शामिल अयोध्या में भगवान श्री राम के मंदिर का निर्माण हो चुका है। इतना ही नहीं; भाजपा व ठाकरे की शिवसेना के एजेंडा में काशी-मथुरा में मंदिर निर्माण का मुद्दा भी शामिल है और इसके लिए न्यायालयों में लड़ाई शुरू भी हो चुकी है। केन्द्र की मोदी सरकार और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार हिन्दुओं से जुड़े हर आस्था स्थल के विवाद में न्यायालयों में कांग्रेस की भाँति हिन्दू विरोधी रवैया नहीं अपना रही हैं। भविष्य में भी कई ऐसे मुद्दे आएंगे, जहाँ भाजपा के साथ न रहने का उद्धव की शिवसेना को जरूर खेद रहेगा।
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