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‘पचासी’ हुए, पर परिपक्व नहीं राहुल : ख़ुद लिखते हैं पतन की पटकथा

49 वर्ष के अंतिम दिन भी भारत-चीन विवाद पर हास्यास्पद बयान

दिल्ली 2013 से दिल्ली 2020 तक पराजय का पर्याय बने राहुल गांधी

7 वर्षों में हुए 47 में से 39 चुनावों में कांग्रेस को मिली क़रारी हार

विशेष टिप्पणी : कन्हैया कोष्टी
अहमदाबाद (19 जून, 2020)। देश में इस समय दो सबसे बड़े राजनीतिक दल सक्रिय एवं राष्ट्रव्यापी हैं। इनमें एक है 134 वर्षों से अधिक पुरानी तथा ऐतिहासिक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) और दूसरी है केवल 40 वर्ष पुरानी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी-BJP), जो आज केन्द्र की सत्ता में है।
वैसे आज भाजपा या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (NARENDRA MODI) के नेतृत्व भाजपा के शिखर पर पहुँचने की गाथा का वर्णन करने का दिन नहीं है। आज दिन है भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व करने वाली और स्वतंत्रता के बाद भारत पर 60 वर्षों से अधिक समय तक शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का।
जी हाँ ! कांग्रेस के ‘युवराज’ कहे जाने वाले राहुल गांधी (RAHUL GANDHI) का आज जन्म दिन है। राहुल आज पूरे 50 वर्ष के हो गए हैं, परंतु राजनीतिक दृष्टिकोण से देखें, तो कदाचित राहुल गांधी ने अपना जन्म दिन हर्षोल्लास के साथ 20 जून, 2013 को मनाया होगा। अपने 43वें जन्म दिवस के समय राहुल गांधी केवल कांग्रेस के ही नहीं, वरन् देश के भी ‘युवराज’ कहलाते थे, परंतु 2014 से राहुल ही नहीं, पूरी कांग्रेस के ग्रह पलट गए।
वैसे बदली हुई परिस्थितियों को फिर से बदला जा सकता है। यह कोई असंभव कार्य नहीं है। हमारे देश में ख़ुद कांग्रेस सहित कई ऐसे राजनीतिक दल हैं, जो सत्ता से बेदख़ल होने के बाद दोबारा सत्ता में लौटे हैं, परंतु राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस के हालात बद से बदतर ही होते रहे हैं और आज जब वे 50वाँ जन्म दिवस मना रहे हैं, तब भी कांग्रेस पार्टी एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है, जिसका राष्ट्रीय स्तर पर कोई बड़ा जनाधार नहीं है और न ही राज्यों में वर्चस्व ही है।
राहुल गांधी आज ‘पचासी’ तो हो गए, परंतु पिछले 16 वर्षों से सक्रिय राजनीति करने के बावज़ूद परिपक्व नहीं हुए हैं। यहाँ तक कि अपने पचासवें जन्म दिवस की पूर्व संध्या यानी 18 जून को ही राहुल ने अपनी राजनीतिक अपरिपक्वता का एक और परिचय दिया और आम से लेकर ख़ास तक सभी लोगों के बीच हास्यास्पद सिद्ध हुए।

राहुल की उल्टी चाल : परिपक्व होती अपरिपक्वता

देश में इस समय भारत-चीन सीमा विवाद चल रहा है। 20 जवानों की शहादत हुई है। लोगों में ग़म और ग़ुस्से का माहौल है। इन सबके बीच एक विपक्षी नेता होने के नाते राहुल का केन्द्र की सरकार से सवाल पूछना स्वाभाविक है, परंतु राहुल का हर सवाल उनकी अपरिपक्वता को और परिपक्व कर जाता है।
राहुल ने गलवान घाटी (GALWAN VALLEY) में भारत-चीन सैन्य झड़प पर सरकार से पूछा कि भारतीय जवानों को बिना हथियार कैसे भेजा गया ? इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है ? मूर्खतापूर्ण एवं अभ्यास सहित सवाल पूछ कर राहुल ने अपनी ही फज़ीहत करा ली। क्या राहुल नहीं जानते कि भारत-चीन के बीच 1993 (नरसिंह राव सरकार) और 1996 (देवेगौडा सरकार) में जो संधि हुई थी, उसके अनुसार दोनों ओर से हथियार न चलाने पर सहमति जताई गई थी ?
हालाँकि पहले भाजपा की ओर से प्रवक्ता संबित पात्रा और फिर सरकार की ओर से विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने राहुल का ज्ञानवर्धन कर दिया और साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि भारत-चीन के बीच हथियार न चलाने पर सहमति है, हथियार साथ नहीं रखने की कोई शर्त नहीं है। गलवान घाटी में भारतीय जवान हथियारों से लैस थे।

कांग्रेस के ‘स्वर्ण काल’ में राहुल ने किया राजनीति में प्रवेश

यह पहला और आख़िरी मौक़ा नहीं है जब राहुल ने राजनीतिक अपरिपक्वता के दर्शन कराए हों। आज जब वे 50वाँ जन्म दिवस मना रहे हैं, तब कांग्रेस ही नहीं, देश का हर नागरिक यही प्रार्थना करेगा कि राहुल अब राजनीतिक रूप से परिपक्व होकर राजनीति करें।
वैसे राहुल की अपरिपक्वता के पीछे कहीं न कहीं उनकी ‘रईसी’ वाली सोच है। यही कारण है कि वे चीज़ों को समझे बिना ही प्रतिक्रियाएँ देते हैं। इतना ही नहीं, राहुल गांधी उस कांग्रेस को देखते हुए बड़े हुए हैं, जो ज़्यादातर सत्ता में रही या किंगमेकर की भूमिका में रही। स्वयं राहुल ने लोकसभा चुनाव 2004 में अमेठी से चुनाव लड़ने के साथ राजनीति में जब प्रवेश किया, तब कांग्रेस सत्ता के केन्द्र में आ गई।
सोनिया गांधी (SONIA GANDHI) भारतीय मूल की नहीं होने के कारण प्रधानमंत्री नहीं बन सकीं और राहुल में जब आज परिपक्वता नहीं है, तो 16 साल पहले कितनी परिपक्वता होगी ? ऐसे में डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने। स्पष्ट था कि केन्द्र की सत्ता और सत्ता के केन्द्र में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी एक ‘राजमाता’ की भूमिका में थीं, तो राहुल गांधी को ‘युवराज’ कहा जाता था।

दस साल में धीरे-धीरे दम तोड़ती गई कांग्रेस

डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार गठबंधन की विवशताओं के बीच जैसे-तैसे चलती लग रही थी। सरकार पर एक तरफ गांधी परिवार का दबदबा था, तो दूसरी तरफ सहयोगी दलों का दबाव। ऐसे में 2004 से 2014 के दस वर्षों में देश में भ्रष्टाचार का बोलबाला रहा। राज्यों में कांग्रेस समिटती गई और अंतत: 2014 में उसे अब तक कि सबसे बुरी हार झेलनी पड़ी।

राहुल को उदय, कांग्रेस का पतन

राहुल गांधी ने 2004 में राजनीति में प्रवेश किया। इसके बाद कांग्रेस 10 साल तक सत्ता में रही, परंतु सोनिया गांधी ने 2013 में राहुल गांधी को उपाध्यक्ष बनाया और कांग्रेस के पतन की शुरुआत हो गई। जनवरी-2013 में उपाध्यक्ष बनने से लेकर दिसंबर-2017 में अध्यक्ष बनने तक और अगस्त-2019 में अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद अब तक यानी 7 वर्षों में देश में 2 लोकसभा चुनाव और 45 राज्य विधानसभा चुनाव हुए। कुल मिला कर देश में 47 चुनाव हुए, जिनमें से कांग्रेस को केवल 3 राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं राजस्थान में ठीकठाक बहुमत के साथ सत्ता मिली। कांग्रेस न केवल लोकसभा चुनाव 2014 एवं 2019 में बुरी तरह परास्त हुई, वरन् 45 में से 39 राज्यों भी उसे हार का सामना करना पड़ा।

दिल्ली से दिल्ली तक हार ही हार

राहुल ने जनवरी-2013 में जब कांग्रेस उपाध्यक्ष पद का उत्तरदायित्व संभाला, तब उनके सामने सबसे पहली चुनौती दिल्ली विधानसभा चुनाव 2013 के रूप में आई, जिसमें कांग्रेस को 15 साल की सत्ता से हाथ धोना पड़ा। दिल्ली विधानसभा चुनाव 2013 से लेकर दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 तक देश में हुए कुल 47 चुनावों में कांग्रेस के हाथ केवल हार और हार ही लगी। इनमें केवल इस वर्ष हुए महाराष्ट्र, झारखंड, दिल्ली एवं हरियाणा विधानसभा चुनावों के समय ही राहुल गांधी पार्टी में किसी बड़े पद पर नहीं थे, क्योंकि दिसंबर-2017 में कांग्रेस अध्यक्ष बनने वाले राहुल ने लोकसभा चुनाव 2019 में हार के बाद अगस्त-2019 में अध्यक्ष पद छोड़ दिया था।

राहुल की अपरिक्वता से पार्टी को भारी हानि

राहुल गांधी आज पचास साल के हो गए, परंतु राजनीतिक अपरिपक्वता के मामले में अब भी वे काफी पीछे हैं। भारत-चीन विवाद पर ताज़ा हास्यास्पद सवाल से पहले भी राहुल गांधी लोकसभा चुनाव 2019 में राफेल डील मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विरुद्ध ‘चौकीदार चोर है’ के विवादास्पद नारा देकर पार्टी को भारी हानि पहुँचा चुके हैं, क्योंकि आम जनता में एक बात स्पष्ट है कि मोदी के दामन पर कोई दाग़ हो ही नहीं सकता। यही कारण है कि राहुल का उठाया हर मुद्दा कभी-कभी मोदी विरोध से आगे राष्ट्र विरोधी जैसा बन जाता है। ऐसे में अब यह देश राहुल गांधी से यही अपेक्षा करेगा कि 50 वर्ष होने के बाद ही सही, लेकिन राहुल गांधी अब ‘बड़े’ हो जाएँ।
फिलहाल आप राहुल के राजनीति में आने के बाद कांग्रेस को मिली पराजयों पर नज़र डालिए :
  1. दिल्ली विधानसभा चुनाव 2013
  2. मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2013
  3. राजस्थान विधानसभा चुनाव 2013
  4. छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2013
  5. नगालैण्ड विधानसभा चुनाव 2013
  6. त्रिपुरा विधानसभा चुनाव 2013
  7. लोकसभा चुनाव 2014
  8. आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव 2014
  9. ओडिशा विधानसभा चुनाव 2014
  10. अरुणाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव 2014
  11. सिक्किम विधानसभा चुनाव 2014
  12. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2014
  13. हरियाणा विधानसभा चुनाव 2014
  14. झारखंड विधानसभा चुनाव 2014
  15. जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव 2014
  16. दिल्ली विधानसभा चुनाव 2015
  17. असम विधानसभा चुनाव 2016
  18. केरल विधानसभा चुनाव 2016
  19. तमिलनाडु विधानसभा चुनाव 2016
  20. पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2016
  21. गुजरात विधानसभा चुनाव 2017
  22. हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017
  23. गोवा विधानसभा चुनाव 2017
  24. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017
  25. उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2017
  26. तेलंगाना विधानसभा चुनाव 2018
  27. मिज़ोरम विधानसभा चुनाव 2018
  28. नगालैण्ड विधानसभा चुनाव 2018
  29. त्रिपुरा विधानसभा चुनाव 2018
  30. कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2018 (हार के बाद गठबंधन सरकार, फिर सत्ता गँवाई)
  31. मेघालय विधानसभा चुनाव 2018
  32. ओडिशा विधानसभा चुनाव 2019
  33. आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव 2019
  34. अरुणाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव 2019
  35. सिक्किम विधानसभा चुनाव 2019
  36. लोकसभा चुनाव 2019
  37. हरियाणा विधानसभा चुनाव 2020
  38. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2020 (हार के बाद गठबंधन सरकार में भागीदार)
  39. दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020

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