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‘श्मशान’ में मिला गुजरात के मुख्यमंत्री पद का ऑफर

आलेख : कन्हैया कोष्टी

अहमदाबाद (1 अक्टूबर, 2020)। भारतीय इतिहास में अक्टूबर का महीना दो महापुरुषों के लिए सर्वाधिक स्मरणीय है। ये दो महापुरुष हैं राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी अर्थात् महात्मा गांधी और लौह पुरुष सरदार वल्ललभभाई पटेल। 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी ने अवतार धरा था, तो 31 अक्टूबर को गांधी के ‘लक्ष्मण’ सरदार पटेल अवतरित हुए थे, परंतु क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि भारतीय इतिहास में अक्टूबर के महीने में आज से ठीक 19 वर्ष पहले भी एक विलक्षण घटना घटित हुई थी ?

कदाचित् स्वतंत्र भारत के इतिहास में यदि अक्टूबर महीने को अविस्मरणीय रूप से याद रखना हो, तो हमें-आपको तथा समूचे भारत वर्ष को 1 अक्टूबर, 2001 के दिन को अचूक रूप से अविस्मरणीय मानना होगा, क्योंकि वही यह दिन था, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री एवं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा-BJP) के तत्कालीन ‘भीष्म’ अटल बिहारी वाजपेयी ने वर्तमान भारत के ‘स्वर्णिम युग’ की आधारशिला रखी थी।

जी हाँ ! हम बात कर रहे हैं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी एवं वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की। यदि अटलजी ने 1 अक्टूबर, 2001 को एक फोन न किया होता, तो नरेन्द्र मोदी आज देश के प्रधानमंत्री नहीं होते। आप आश्चर्य में पड़ गए होंगे न ! बात ही आश्चर्य उत्पन्न करने वाली है।

किसी को मुख्यमंत्री पद का ऑफर ‘श्मशान’ में मिला है कभी ?

क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि आप श्मशान भूमि पर हों और आपको वहाँ देश का प्रधानमंत्री फ़ोन करके किसी राज्य के मुख्यमंत्री पद का ऑफर दें ? नहीं कर सकते न, परंतु यह सत्य है। भारत के दर्जनों राज्यों में बीसियों राजनीतिक दलों के सैकड़ों नेताओं को मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिला होगा, परंतु नरेन्द्र मोदी देश के एकमात्र तथा ऐसे पहले राजनेता हैं, जिन्हें श्मशान भूमि पर गुजरात का मुख्यमंत्री बनने का ऑफर दिया गया।

जी हाँ ! 19 वर्ष पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता माधवराव सिंधिया की 30 सितंबर, 2001 को विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। सिंधिया के साथ 8 अन्य लोग भी थे, जो इस दुर्घटना में काल का ग्रास बन चुके थे। सिंधिया कांग्रेस के दिग्गज नेता थे और राजघराने के सदस्य थे। स्वाभाविक था कि उनके अंतिम दर्शन से लेकर अंतिम संस्कार तक की समग्र प्रक्रियाओं में लाखों समर्थक उमड़े थे, परंतु भाजपा संगठन में कार्यरत् नरेन्द्र मोदी सिंधिया के नहीं, अपितु एक निजी चैनल के पत्रकार गोपाल बिष्ट की अंत्येष्टि में गए थे।

श्मशान में गूंजी फ़ोन की घंटी और पड़ी स्वर्णिम युग की नींव

1 अक्टूबर, 2001 का वह दिन था, जब नरेन्द्र मोदी गोपाल बिष्ट के अंतिम संस्कार के लिए श्मशान में थे। ठीक उसी समय नरेन्द्र मोदी के मोबाइल फ़ोन की घंटी बजी। मोदी ने फ़ोन रिसीव किया और सामने से देश के प्रधानमंत्री की आवाज़ आई, ‘कहाँ हो ?’ मोदी ने कहा, ‘श्मशान में हूँ।’ अटलजी बोले, ‘श्मशान में क्या कर रहे हो, भाई ?’ मोदी बोले, ‘मैं गोपाल के अंतिम संस्कार में आया हूँ, जिनकी माधवराव सिंधिया के साथ विमान दुर्घटना में मौत हो गई। मैंने सोचा कि सिंधियाजी की अंत्येष्टि में तो सब जाएँगे, तो मैं गोपाल की अंत्येष्टि में आ गया।’ अटलजी थोड़ा निराश हुए, ‘तुम श्मशान में हो, परंतु मुझे ज़रूरी बात करनी थी। कैसे कहूँ ?’ मोदी ने कहा, ‘कहिए, कहिए… क्या कहना चाहते हैं।’ अटलजी ने कहा, ‘तु्म्हें गुजरात जाना है !’ नरेन्द्र मोदी चौंक गए, ‘क्यों ?’ अटलजी ने कहा, ‘तुम्हें गुजरात जाकर मुख्यमंत्री का पदभार संभालना है।’ नरेन्द्र मोदी ने कहा, ‘ठीक है।’

न अटल, न आडवाणी… किसी ने नहीं सोचा था !

आज नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं, परंतु 1 अक्टूबर, 2001 को जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने तत्कालीन उप प्रधानमंत्री एवं गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी के सबसे चहेते नरेन्द्र मोदी को गुजरात में केशूभाई पटेल के स्थान पर मुख्यमंत्री बनाने का ऑफर दिया था, तब न अटल, न आडवाणी, न गुजरात और न ही देश ने यह कल्पना की थी कि जिस नरेन्द्र मोदी को वे देश के 5 प्रतिशत भूभाग अर्थात् गुजरात का मुख्यमंत्री बनाने जा रहे हैं, वो नरेन्द्र मोदी संगठन से सरकार की अपनी यात्रा इतनी तीव्रता से करेंगे कि केवल 13 वर्षों में देश के प्रधानमंत्री बन जाएँगे।

मोदी@19 : गोल्डन गुजरात से भव्य भारत की यात्रा

नरेन्द्र मोदी आज यानी 1 अक्टूबर, 2020 को चुनावी तथा शासनिक राजनीति में पूरे 19 वर्ष हो चुके हैं। 17 सितंबर, 1950 को जन्मे नरेन्द्र मोदी 8 वर्ष की आयु में अर्थात् 1958 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस-RSS) से जुड़े, 1971 में आरएसएस में पूर्णकालिक प्रचारक बने, फिर 1980 में स्थापित भाजपा में संगठन में विभिन्न भूमिकाएँ निभाते रहे। कुल मिला कर नरेन्द्र मोदी ने 30 वर्षों तक संघ एवं भाजपा में संगठन स्तर पर छोटे-से स्वयंसेवक-कार्यकर्ता से लेकर प्रचारक-महासचिव तक के पदों पर कार्य किया, परंतु वे स्वयं चुनावी या शासनिक राजनीति में कभी नहीं उतरे। इस प्रकार 1 अक्टूबर, 2001 को अटलजी के उस फ़ोन के बाद नरेन्द्र मोदी चुनावी तथा शासनिक राजनीति के मैदान में उतरे और आज यानी 1 अक्टूबर, 2020 को नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के प्रस्ताव से लेकर देश के प्रधानमंत्री बनने तक की 19 वर्षों की यात्रा पूर्ण की है। 19 वर्षों की इस यात्रा में नरेन्द्र मोदी ने गोल्डन गुजरात से लेकर भव्य भारत के निर्माण तक के अपने संकल्प को पूर्ण करने के प्रयास लगातार, निरंतर, अविरत् बनाए रखे हैं और एक दिन की भी छुट्टी लिए बिना लगभग 13 वर्षों तक गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में और पिछले 6 वर्षों से अधिक समय से देश के प्रधानमंत्री के रूप में सक्रिय, क्रियाशील, कार्यशील तथा प्रयत्नशील हैं।

(क्रमश:)

ध्यान दें : मोदी@19 – PART-2 में मोदी की यात्रा के अगले पड़ावों का विश्लेषण करेंगे।

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