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अहमदाबाद, 28 दिसंबर (बीबीएन)। धीरूभाई अंबाणी के लिए किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। धीरूभाई का जन्म 28 दिसंबर, 1932 को हुआ था। धीरूभाई अंबाणी की आज 88वीं जयंती है।

जब धीरूभाई का नाम आता है, तब हर छोटे से छोटा व्यवसायी प्रेरणा लेने का प्रयास करता है, तो बड़े से बड़ा व्यापारी उन जैसा बनने के सपने संजोता है। धीरूभाई के संघर्ष की कहानियाँ तो बहुत सुनी-सुनाई जाती हैं, परंतु क्या आप जानते हैं कि धीरूभाई जिस गाँव में जन्मे, वह गाँव चोरों को बाड़ा था ?

जी हाँ ! धीरूभाई का जन्म पराधीन भारत के सौराष्ट्र राज्य में स्थित चोरवाड गाँव में हुआ था। आपको आश्चर्य होता होगा कि धीरूभाई जैसे महान एवं वैश्विक व्यवसायी के गाँव का नाम चोरवाड क्यों है ?

चलिए, आपको इसका भी कारण बताएँगे। पहले ये जान लीजिए कि वर्तमान में चोरवाड की भौगोलिक स्थिति क्या है ?

वर्तमान में धीरूभाई अंबाणी का जन्म स्थान चोरवाड एक छोटा नगर का रूप ले चुका है। चोरवाड की अपनी नगर पालिका है। चोरवाड अब जूनागढ जिले में माळिया-हटीना तहसील में स्थित है।

15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद चोरवाड बृहन्मुंबई राज्य का हिस्सा था, परंतु 1 मई, 1960 को पृथक गुजरात की स्थापना के बाद चोरवाड गुजरात का हिस्सा बन गया।

चोरवाड का क्या है अर्थ ?

चोरवाड एक गुजराती शब्द है। यद्यपि इसमें चोर शब्द हिन्दी और गुजराती दोनों में प्रयुक्त होता है। चोर अर्थात् चोरी करने वाला। अब रही बात वाड की, तो गुजराती शब्द वाड का अर्थ होता है, बाड़ या बाड़ा। इस प्रकार चोरवाड का अर्थ हुआ, वह बाड़ा, जहाँ चोर बसते हैं अर्थात् चोरों का बाड़ा !

क्या कहता है इतिहास ?

चोरवाड यानी चोरों का बाड़ा, परंतु इसका अर्थ यह नहीं कि चोरवाड में रहने वाले लोग चोर हैं। वास्तव में समुद्र तट पर स्थित चोरवाड में किसी ज़माने में समुद्री लुटेरे रहते थे, जो समुद्र में आवागमन करने वाले जहाजों को लूटते थे। इसीलिए इस जगह का नाम चोरवाड पड़ा।

‘बदनाम बाड़े’ का बड़ा बिज़नेसमैन

वैसे तो चोरवाड यानी चोरों के बाड़े में आज कोई समुद्री लुटेरे नहीं रहते। यह तो पुराने ज़माने में रहने वाले समुद्री लुटेरों के कारण नाम पड़ा। नाम तो एक बार पड़ गया, परंतु युग बदला, लोग बदले और चोरवाड जैसे स्थान पर धीरूभाई अंबाणी जैसे महान व्यक्तित्व का जन्म हुआ।

किसी ने सोचा नहीं होगा कि ‘चोरवाड का छोरा’ धीरूभाई अंबाणी एक वैश्विक बिज़नेसमैन बन कर उभरेंगे। धीरूभाई अंबाणी ने परिवार की निर्धन अवस्था में सहायक बनने के लिए पहले गिरनार में भजिए (पकौड़े) बेचे, फिर मुंबई पहुँचे और वहाँ से एक महान व्यवसायी बनने की दिशा में अग्रसर होने के लिए पहला क़दम बढ़ाया यमन की ओर। यमन में 300 रुपए मासिक वेतन पर नौकरी की और वहीं से एक गुजराती व्यवसायी मानसिकता का बीज धीरूभाई के मनोमस्तिष्क में पनपा। उसके बाद धीरूभाई ने रिलायंस की नींव रखी।

तो यह थी धीरूभाई के गाँव से जुड़ी एक रोचक जानकारी।

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