भाजपा ने 2016 के मुक़ाबले 25 गुना अधिक सीटें जीत कर इतिहास रचा
भाजपा ने नंदीग्राम से कर दिया ममता बनर्जी के काउंटडाउन का उद्घोष ?
विश्लेषण : कन्हैया कोष्टी
अहमदाबाद, 3 मई (बीबीएन)। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की हार राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गई है। नरेन्द्र मोदी और ममता बनर्जी के बीच सीधी टक्कर वाले माने जा रहे इस चुनाव में नि:संदेह ममता ने बाज़ी मार ली है, परंतु आँकड़ों की गहराई में उतर देखा जाए, तो मोदी हार कर भी ऐतिहासिक जीत पाने में सफल रहे हैं।
इस चुनाव का सबसे बड़ा निष्कर्ष यह है कि पश्चिम बंगाल में जनता को तृणमूल कांग्रेस (TMC) के विकल्प के रूप में बीजेपी मिल गई है। यह बात और है कि इस विकल्प को विश्वास के रूप में पर्याप्त वोट नहीं मिले, परंतु जो भी मिला, वह बहुत बड़ा मिला है।
किसी भी चुनाव का सटीक विश्लेषण करने के लिए पिछले चुनावी आँकड़ों पर जाना पड़ता है और जब पश्चिम बंगाल के मामले में पीछे की ओर देखते हैं, तो स्पष्ट नज़र आता है कि भाजपा ने 2021 में अपनी भावी भव्य जीत की मज़बूत नींव डाल दी है।
पाँच साल में 25 गुना बड़ी जीत
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 और 2016 का तुलनात्मक अध्ययन दर्शाता है कि इस बार भाजपा ने 25 गुना अधिक सफलता हासिल की है। 2016 में भाजपा को पश्चिम बंगाल में केवल 10.3 प्रतिशत वोट और 3 सीटें ही मिली थीं, जबकि 2021 में भाजपा को मिले वोट प्रतिशत का आँकड़ा लगभग 4 गुना बढ़ कर 38.13 पर पहुँच गया है। इसी प्रकार सीटों के मामले में भाजपा ने 25 गुना छलांग लगा कर 2016 की 3 सीटों के मुक़ाबले 2021 में 77 सीटें हासिल की हैं। यदि लोकसभा चुनावों के आँकड़ों के साथ तुलना की जाए, तो भी भाजपा का प्रदर्शन पिछले 7 वर्षों में दुगुना अच्छा रहा है। लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा को 17.3 प्रतिशत वोट और 2 सीटें हासिल हुई थीं, तो 2019 में 40.6 प्रतिशत वोट के साथ 18 सीटें मिली थीं।
भाजपा को 2024 के लिए मिली बड़ी शक्ति
पश्चिम बंगाल में भाजपा के समक्ष अगली चुनौती लोकसभा चुनाव 2024 है और 2021 की इस हार वाली जीत से भाजपा को 2024 के लिए बड़ी शक्ति प्राप्त हुई है। यह सही है कि भाजपा को 3 वर्ष पहले लोकसभा चुनाव 2019 में 40.6 प्रतिशत वोटों के साथ 18 सीटें मिली थीं, उसके मुक़ाबले 2021 में वोट प्रतिशत घट कर 38.13 पर आ गया। चूँकि यह विधानसभा चुनाव था और इसमें स्थानीय मुद्दों का अधिक हावी रहना स्वाभाविक था, परंतु विधानसभा चुनाव में 2021 में 2016 के मुक़ाबले तीन गुना अधिक वोट और 25 गुना अधिक सीटें प्राप्त होना भाजपा के लिए लोकसभा चुनाव 2024 में बड़ी शक्ति के रूप में काम करेगा।
नंदीग्राम से हो चुका ममता के काउंटडाउन का उद्घोष
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि एक मुख्यमंत्री होने के बावजूद ममता बनर्जी नंदीग्राम विधानसभा सीट से चुनाव हार गईं। शेष बंगाल की 213 विधानसभा क्षेत्रों की जनता ने भले ही ममता बनर्जी के लिए कोलकाता के द्वार लगातार तीसरी बार खोल दिए हों, परंतु नंदीग्राम ने ममता के काउंटडाउन का उद्घोष कर दिया है, जहाँ भाजपा ने शुभेंदु अधिकारी के बूते ममता को न केवल एक सीट पर सिमट जाने पर विवश कर दिया, अपितु पूरा ज़ोर लगाने के बावजूद ममता इस सीट को बचा नहीं पाईं। नंदीग्राम का उद्घोष यही है कि पश्चिम बंगाल में परिवर्तन की हवा शुरू हो चुकी है। भले ही वह परिवर्तन 2021 में नहीं हुआ, परंतु इस परिवर्तन को 2024 में आंधी और 2026 में सुनामी बनने से शायद ममता नहीं रोक पाएँगी।
तुष्टीकरण ने दिलाई ममता को जीत, वही बनेगा हार का कारण
हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि पश्चिम बंगाल की कुल जनसंख्या में लगभग 35 प्रतिशत मुस्लिम हैं। ममता बनर्जी अपनी तुष्टीकरण नीति और मुसलमानों में भाजपा तथा मोदी का भय पैदा करने में सफल रही हैं। यही कारण है कि 35 प्रतिशत मुस्लिम वोटर एकजुट रहे और उन्होंने भाजपा को हराने तथा विकल्प के रूप में ममता को ही चुनने में पूरी ताक़त झोंक दी, परंतु अब ममता के लिए अगले 5 साल भी तुष्टीकरण की इसी नीति पर काम करना मजबूरी हो जाएगा और फिर एक दिन वह भी आएगा, जब बंगाल के 65 प्रतिशत नॉन-मुस्लिम वोटर एकजुट होकर ममता के सर पर विदाई का शहरा सजा देंगे और इसकी शुरुआत संभवत: लोकसभा चुनाव 2024 में ही देखने को मिलेगी।
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